हरिवंश राय बच्चन का जीवन परिचय , तथ्य और विचार
नमस्कार! , inkhindi पर आपका स्वागत हैं।इस आर्टिकल में हम महान साहित्यकार डॉक्टर हरिवंश राय बच्चन के बारे में बात करने वाले हैं। उनके प्रारंभिक जीवन से लेकर उनकी कई सारी बाते और उनके अमूल्य विचार के बारे में बात करने वाले हैं।
प्रारंभिक जीवन :
बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन जिन्होंने हिंदी सिनेमा में एक खास पहचान बनाई आज अमिताभ बच्चन का नाम बेहद खास है। साहित्य जगत में उनके पिता हरिवंश राय बच्चन का भी एक रुतबा है। आइए जानते हैं हरिवंश राय बच्चन की कुछ अनसुनी कहानियां उनकी इस बायोग्राफी में।

डॉक्टर हरिवंश राय बच्चन श्रीवास्तव उर्फ़ बच्चनजी का जन्म 27 नवंबर 1960 को हुआ था। इलाहाबाद में हिंदी साहित्य के एक ऐसे दिवाकर का जन्म हुआ जिन्होंने ताउम्र अपनी कलम से दुनिया को प्रभावित करते रहे। प्रताप नारायण श्रीवास्तव और सरस्वती देवी की हिंदू कायस्थ परिवार में जन्मे हिंदी के इस सपूत का नाम हरिवंश राय बच्चन था। इनके पिताजी प्रताप नारायण श्रीवास्तव प्रतापगढ़ के रानीगंज तहसील में स्थित एक छोटे से गांव , बाबू पट्टी के मूल निवासी थे। हरिवंश राय बच्चन अपने आप में ही खास थे , जिनको हिंदी के प्रमुख कविओ में से है। उनको आज भी बेहरतीन कविओ में से एक माना जाता है। उनकी कविताए कमाल की होती है।उनकी कविताएं जिंदगी को एक नया आयाम तिथि है।
शिक्षा :
उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा इलाहाबाद में ली थी। उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम.ऐ और बाद में विदेश जा कर केम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य के विख्यात कवि डब्यू बी गेट्स की कविताओं पर शोध कर पी.एच.डी की डिग्री प्राप्त की।
व्यवहारिक जीवन :

19 वर्ष की अवस्था में सन 1926 में उनका विवाह श्यामा बच्चन जी के साथ हुआ। उस समय श्यामा जी उम्र मात्र 14 वर्ष की थी लेकिन दोनों के बीच में वैवाहिक जीवन का यह कार्यकाल बहुत अधिक समय तक नहीं चला , क्योंकि 1936 में ही टीबी के कारण श्यामा जी की मृत्यु हो गई। 5 साल बाद 1941 में बच्चन जी ने एक पंजाबन तेजी सुरीजी से विवाह किया। जो रंगमंच से जुडी हुई थी।

इसी समय उन्होंने नीर कर निर्माण फिर जैसी कविताओं की रचना की। इस व्यवहारिक जीवन में तेजी बच्चन की कोख से अभिताभ बच्चन और अजिताभ बच्चन ने जन्म लिया।
कार्यक्षेत्र :

हरिवंश राय बच्चन व्यवसाय से शुरुआती दिनों में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में कई वर्षों तक अंग्रेज़ी विभाग में प्राध्यापक रहे। थोड़ा समय हरिवंश राय बच्चन आकाशवाणी के साहित्य कार्यक्रमों से सम्बद्ध रहे। सन. 1955 में एक विशेषज्ञ की पदवी प्राप्त कर वे दिल्ली चले गये। उन्होंने कैम्ब्रिज जाकर सन. 1952-1954 में एक अंग्रेज़ी कवि पर अद्वित्य लिखा, जो आगे जाकर बहुत प्रचलित हुआ।
साहित्य परिचय :

बच्चनजी की कविताए और रचनाए एक ऐतिहासिक मिसाल हैं।उनके के काव्य की गहराई , सच्चाई और वास्तविकता ही उनकी असली लोकप्रियता है। कोई संकोच के बिना हम कह सकते हैं कि , आज भी केवल हिन्दी साहित्य में ही नहीं, परंतु समग्र विश्व के अव्वल लोकप्रिय और महान कवियों में ‘बच्चनजी’ का स्थान सुरक्षित है। हरिवंश राय बच्चनजी उत्तर छायावादी युग के आस्था वादी कवि हैं। उनकी कविताओं में मानवीय भावना की सहज और स्वाभाविक अभिव्यक्ति हुई है। सरलता , संगीतात्मकता का प्रवाह और मार्मिकता इनके काव्य की विशेषताएं हैं। इन्हीं विशेषताओं के कारण इनको इतनी अधिक लोकप्रियता मिली है।
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डॉ. नगेंद्र ने “बच्चन”जी की काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए लिखा है “जीवन की मौलिक भावनाओं का व्यक्तिगत रूप में प्रबल संवेदन करते हुए उन्हीं के अनुरूप प्रकृति अथवा जीवन के सरल एवं व्यापक तत्व का साधारणीकरण करना बच्चन की काव्य चेतना की मुख्य विशेषता है।”
साहित्यिक अवदान :
हरिवंश राय जी छायावादोत्तर काल के सुविख्यात कवियों में से हैं। आपने श्रृंगार के सहयोग व वियोग पक्षों पर ही अधिक रचनाएं लिखी हैं। उल्लास एवं वेदना पर आधारित उनकी कविताएं अत्यंत हृदयस्पर्शी हैं।

उमर खय्याम की रुबाइयां पर आधारित उनकी कृति “मधुशाला” ने इन्हें सर्वाधिक यश प्रदान किया। इनकी यह रचना सामान्य जन-जीवन में अत्यंत लोकप्रिय हुई। उन्होंने हिंदी काव्य को सरलता पूर्व शैली में जन-साधारण तक पहुंचाने का सराहनीय कार्य किया। बच्चन जी ने हिंदी गीतों को नई दिशा प्रदान की। उनको “छायावाद” के प्रवर्तक कवि के रूप में भी स्वीकार किया जाता है। मानवीय भावनाओं की अभिव्यक्ति करने में आप अत्यंत प्रवीण है। तरलता , स्वाभाविकता एवं मार्मिकता उनके काव्य की प्रमुख विशेषताए हैं।
Harivansh Rai Bachchan Quotes :
हारना तब आवश्यक हो जाता है , जब लड़ाई अपनों से हो। और जीतना तब आवश्यक हो जाता है जब लड़ाई अपने आप से हो।
मंज़िल मिले ये तो मुकदर की बात हैं , हम कोशिश ही न करे ये तो गलत बात हैं।
किसी ने बर्फ से पूछा कि , आप इतने ठंडे क्यों को! बर्फ ने कहा , "मेरा अत्तीत भी पानी , मेरा भविष्य भी पानी फिर मै गर्मी किस बात की रखु!"
गिरना भी अच्छा हैं दोस्तो , औकात का पता चलता हैं , बढ़ते हैं जब हाथ उठाने को तब अपनों का पता चलता हैं।
सिख रहा हु अब में भी इंसानो को पढ़ने का हुनर सुना हैं चहेरे पर किताबो से ज्यादा लिखा होता हैं।

रब ने नवाज़ा हमें ज़िंदगी देकर , हम शोहरत मांगते रह गए ; ज़िंदगी गुजारदी शोहरत के पीछे , फिर जीने की महोलत मांगते रह गए।
ये कफ़न , ये जनाजे , ये कब्र सिर्फ बाते हैं मेरे दोस्त वरना मर तो इंसान तभी जाता हैं जब याद करने वाला कोई न हो।
ये समंदर भी तेरी तरह खुदगर्ज निकला , जिन्दा थे तो तैरने न दिया और मर गए तो डूबने न दिया।
क्या बात करे इस दुनिया की , हर शक्स के अपने अफ़साने हैं ; जो सामने हैं उसे लोग बुरा कहते हैं और जिसको कभी देखा नहीं उसे खुदा कहते हैं।
आज मुलाकात हुई जाती हुई उम्र से , मैंने कहा जरा ठहरो तो वो हसकर बोली ,"में उम्र हु ठहरती नहीं , पाना चाहते हो मुझको तो मेरे हर कदम के संग चलो" मैंने भी मुस्कुराते हुए कह दिया - "कैसे चलू में बनकर तेरा हमकदम , तेरे संग चलने पर छोड़ा होगा मुझको मेरा बचपन , मेरी नादानी , मेरा लड़कपन तू ही बता दे कैसे समझदारी की दुनिया अपना लू ! जहा हैं नफरते , दूरिया , शिकायते और अकेलापन में तो दुनिया-ए-चमन में बस एक मुसाफिर हु , गुजरते वक्त के साथ एक दिन यु ही गुजर जाऊंगा। कर के कुछ आखो को नम , कुछ दिलो में याद बन बस जाऊंगा "
सहम सी गई हैं ख्वाहीशे ,
जरूरतों ने शायद उन से उची आवाज़ में बात की होंगी।
इस कदर कड़वाहट आयी उसकी बातो में ,
आखरी ख़त दीमक से भी ना खाया गया।
माना मौसम भी बदलते हैं मगर धीरे धीरे ,
तेरे बदलने की रफ़्तार से तो हवाए भी हैरान हैं।

सिर्फ हम ही हैं तेरे दिल में बस यही गलतफहमी हमें बरबाद कर गई।
जग के विस्तृत अंधकार में जीवन के शत शत विचार में ,
हमें छोड़ कर चली गई ,
लो , दिन की मौन संगिनी छाया साथी ,
अंत दिवस का आया।
शब्द कहा जो तुझको तोके ,
हाथ कहा जो तुझको रोके ,
राह वही हैं , दिशा वही , तू करे जिधर प्रस्थान
अकेलेपन का बल पहचान!
जिस रह पर... हर बार मुझे..
अपना कोई... छलता रहा..
फिर भी... न जाने क्यों में..
उस राह ही... चलता रहा ;
सोचा बहुत... इस बार...
रोशनी नहीं...धुआँ दूंगा...
कैसे भेट तुम्हारी ले लू क्या तुम लाई हो चिंतवन में अपने कर में क्या तुम लाई हो अपने मन में क्या तुम लाई जो में फिर से बंधन जोलू कैसे भेट तुम्हारी लेलु।
आज अपने स्वप्न को मैं ,
सच बनाना चाहता हु ,
दूर की इस कल्पना के ,
पास जाना चाहता हूँ।
असफलता एक चुनोती हैं उसे स्वीकार करो , क्या कमी रह गई , देखो और सुधार करो जब तक न सफल हो , नींद चैन को त्यागो तुम संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम कुछ किये बिना ही जय - जयकार नहीं होती कोशिश करने वालो की कभी हार नहीं होती।
चलो , चलकर बैठे उस ठौर बिछी जिस थल मखमल - सी घास जहा जा शस्य - श्यामला भूमि धवल मरु के बैठी है पास
जहा कोई न किसी का दास
जहा कोई न किसी का नाथ
यह बुरा हैं या अच्छा ,
व्यर्थ दिन इस पर बिताना ,
अब असंभव छोड़ ये पथ ,
दुसरे पर पग बढ़ाना।

हर अजीब सी दौड़ हैं ज़िंदगी , जित जाओ तो कई अपने पीछे छूट जाते हैं , और हार जाए तो अपने ही पीछे छोड़ जाते हैं।
प्रेम चिंरतन मूल जगत का बैर-दृणा मुले क्षण की भूल-चूक लेनी- देनी में सदा सफलता हैं जीवन की।
कृतियाँ :
इनकी रचनाए पाठको और श्रोताओ को मंत्रमुग्ध कर देती हैं। मुख्यत: व्यक्तिवादी कवि होते हुए भी , उन्होंने सामाजिक जान-जीवन पर अपनी मनोभावनाओं को व्यक्त किया।
मधुशाला , ,मधुबाला और मधुकलश यह तीनो संग्रह एक के बाद एक शीघ्र प्रकाशित हुए। हिंदी में इन्हें हालावाद की रचनाएं कहा गया है। बच्चन जी की इन कविताओं में प्यार और कसक है। यह कविताएं दुख को बुलाने में सहायता करती हैं। निशा-निमंत्रण तथा एकांत संगीत इन संग्रहों में कवि के ह्दय पीड़ा साकार हो उठी हैं। यह कृतियां इनकी सर्वोत्कृष्ट काव्य उपलब्धियां की जा सकती हैं।
तेरा हार (१९२९) | मिलान यामिनी (१९५०) नए पुराने गुरु के 1962 | उभरते प्रतिमानो के रूप (१९६९) |
बचपन के साथ क्षण भर (१९३४) | सोपान (१९५३) अभिनव सोपान 1964 | पंत केशव पत्र (१९७०) ऐसा अपनी भाव पर है (१९७०) |
मधुशाला (१९३५) | प्रणय पत्रिका (१९५५) | प्रवासी डायरी (१९७१) |
मधुबाला(१९३६) | धार के इधर उधर (१९५७) मैकबैथ (१९५७) बचपन के लोकप्रिय गीत (१९५७) | जाल समेटा (१९७३) छोटी कटिया (१९७३) |
मधुकलश (१९३७) | आरती और अंगारे (१९५८) जनगीता (१९५८) मरकत द्वीप का स्वर (१९५८) वृद्ध और नाचघर (१९५८) | गोलंबर मेरी कविताएं की आधी सदी (१९८१) |
निशा निमंत्रण (१९३८) खयाम की मधुशाला (१९३८) | औठेलो (१९५९) हेलमेट (१९५९) अमर खैयाम की रुबाईया (१९५९) | मेरी श्रेष्ठ कविताएं (१९८४) |
एकांत संगीत (१९३९) | सुमित्रा नंदन पंत (१९६०) | आकुल अंतर (१९४३) |
बहुत दिन बीते (१९६७) | त्रिभंगिमा (१९६१) आधुनिक कवि (१९६१) नहेरु : राजनैतिक जीवन चरित्र (१९६१) | खादी के फूल (१९४८) सूत की माला (१९४८) |
सतरंगीनी (१९४५) | चार खेमे चौसठ खूँटे (१९६२) | हलाहल (१९४६) बंगाल का काव्य (१९४६) |
मेरा नाम निश्चय है। में इसी तरह की हिंदी कहानिया , हिंदी चुटकुले और सोशल मीडिया से संबंधित आर्टिकल लिखता हु। यह आर्टिकल “हरिवंश राय बच्चन का जीवन परिचय , तथ्य और विचार” अगर आपको पसंद आया हो तो अपने दोस्तों के साथ शेयर करे और हमे फेसबुक , इंस्टाग्राम आदि में फॉलो करे।