तेनाली राम की २५ सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ | 25 Best Tenali Raman Stories In Hindi
तेनाली रामकृष्ण (तेनाली राम) के नाम से भी जाने जाते है। वे एक भारतीय के सर्वश्रेठ विद्वान, कवि, विचारक थे। वे अष्टदिग्गजों में से एक थे। श्री कृष्णदेवराय के दरबार में एक विशेष सलाहकार थे। इस आर्टिकल में हम Tenali Raman stories in hindi और Tenali ramakrishna के बारे में बात करेंगे।
1 : एक अपराधी – Tenali Raman Stories In Hindi
एक अपराधी : एक दिन की बात हैं , राजा कृष्णदेवराय अपने दरबार में मुखातिब थे , और अपने मंत्री – महामंत्री के साथ चर्चा कर रहे थे। पंडित तेनालीराम भी भरी सभा में हाजिर थे। अचानक चरवाहा भरी सभा में उपस्थित हुआ और महाराज न्याय कीजिए , महाराज न्याय कीजिए ऐसा चिल्लाने लगा। महाराज ने उसे कहा वत्स धीरज रखो , क्या हुआ हैं हमें विस्तार से बताओ।
चरवाहा ने बात रखते हुए राजा से कहा , मेरे सामने एक लोभी आदमी बरसो से रह रहा हैं। जिसके घर की हालत खंडहर जैसी हो जाने के बावजूत वो घर की मरम्मत नहीं करवाता। कल मेरी बकरी उसके घर की दीवाल गिरने से मर गई। ये चरवाहे का एक राजा से निवेदन है की कृपया मेरी सहायता कजिए और मेरी बकरी का हर्जाना दिलवाने में मेरी मदद कीजिए। तेनाली ने सभी बात धीरज से सुनी थी बात पूरी होते ही सहजता से बोलै , महाराज दीवार गिरने के लिए केवल पडोशी ही जिन्मेदार नहीं। राजाने बड़ी ही नवीनता से पूछा तो फिर तुम्हारे नजरिए से दोषी कोन हैं ?

“तेनालीराम ने महाराज से विनंती करते हुए कहा , मुझे इस बात की गहराई को जानने के लिए थोड़ा समय दीजिए तब जाकर में असली गुनेगार को आपके सामने पस्तुत कर दूंगा”
राजा कृष्णदेवराय ने तेनाली की विंनती का मान रखते उसे हुए थोड़ा समय दिया। बात की सबिती के लिए चरवाहे के पडोशी को राज दरबार में बुलाया गया। पड़ोशी ने अपनी सफाइ देते हुए कहा , कृपानिधान में इसके लिए दोषी नहीं हु। यह दीवार मैंने किसी और मिस्त्री के हाथो बनवाई थी तो अपराधी तो वो हुआ। तेनाली ने मिस्त्री को दरबार में बुलवाया , मिस्त्री ने खुद को बचाते हुए राजा से कहा , महाराज में अपराधी नहीं हु।मेरा इस बात से कोई संबध नहीं। असली दोष तो उन मजूर लोगो का हैं जिसकी नियत में खोट थी और ज्यादा पानी के इस्तमाल से ईंट अच्छे से चिपक नहीं पाई जिसकी वजह से दीवार गिर गई। आपको अपनी वसूली के लिए मजूर को बुलाना चाहिए।

राजा के आदेश से सिपाही मजदूर को दरबार में बुला लाए। मजदूर ने स्वयं को बचाते हुए कहा , गुनेगार तो वह पानी वाला व्यक्ति हैं। जिसने अधिक मात्रा में पानी मिलाया था। पानी वाले को दरबार में पैस किया गया , वह बोला महाराज मुझे पानी बड़े बरतन दिया गया था जिसकी वजह से आवयश्कता से अधिक पानी भर गया था , और पानी की मात्रा अधिक होने पर भी ज्ञात न रहा।
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मेरे हिसाब से उस व्यक्ति को दोषी ठहरना चाहिए जिसने पानी भरने के लिए मुझे बड़ा सा बरतन दिया था। तेनाली राम ने उस पानी वाले व्यक्ति को कहते हुए पूछा तुम्हे पानी का वह बड़ा सा बरतन कहा से मिला था। पानी वाले आदमी ने सहजता से कहा पानी वाला बरतन मुझे चरवाहे ने दिया था। बड़ा बरतन होने के कारण पानी की मात्रा कितनी हैं यह पता न चला। तेनालीराम ने बड़े ही ठहराव से उस चरवाहे से कहा , यह सब कुछ तुम्हारी वजह से ही हुआ हैं। तुम्हारी एक गलती ने तुम्हारी अपनी बकरी की जान ली हैं।
चरवाहा बड़ा लज्जित हो कर राज दरबार से अपने घर की ओर चल पड़ा , राजदरबार में उपस्थित नगरजानो ने तेनालीराम की बुद्धि , चातुर्य की बड़ी ही प्रंशशा की।
- बोध : दुसरो को दोषी ठहरने से पहले अपने व्यक्तित्व की ओर नजर करनी चाहिए।
2 : महान पुस्तक – Tenali Raman Stories In Hindi
एक महान विद्वान दरबार में उपस्थित हुआ। उसने सभी विजयनगर वासी को ललकारते हुए अहंकार से कहा की , पुरे विश्व में कोई मेरे जितना कोई बुद्धिमान नहीं हैं। अगर किसी दरबारी की इच्छा हैं की मेरे साथ किसी भी प्रत्योगिता में खरा उतर सके तो में चुनौती के लिए तैयार हु। उसके अहंकार को सच्चा मान कर सभी डर गए और किसी ने भी वाद-विवाद करने का साहस नहीं किया।अंत में सभी प्रजाजन इसका समाधान ढूंढने के लिए पंडित तेनालीराम के पास जा पहुंचे। तेनाली ने सभी बात ध्यान ने सुनी , साथ ही दरबार में जा कर घमंडी का चुनाव स्वीकार करते हुए दिन भी निश्चित कर लिया।
निश्चित किये हुए दिन पर तेनाली एक विद्वान पंडित के रूप में राजदरबार पंहुचा। तेनाली ने अपने हाथ में एक गट्ठर ले रखा था जो की दिखने में भरी पुस्तको के सामान लग रहा था। उसी समय वो घमंडी भी राजदरबार में उपस्थित हुआ और तेनालीराम के सामने बैठ गया। तेनालीराम ने अपने राजा कृष्णदेवराय को नमस्कार किया , अपने साथ लाए हुए वह गट्ठर को दोनों के बिच रख दिया।

इसी के साथ दोनों ही विवाद के लिए पूरी तरह से तैयार थे। राजा को पहले से ज्ञात था की तेनाली के मन में पहेल से ही बैठा बिठाया हुई योजना होगी , इस लिए महाराज निश्चिंत थे। इसी के साथ राजा ने वाद-विवाद प्रारंभ करने लिए दोनों प्रत्योगी को अनुमति दी। तेनालीराम पहले उठे , उस प्रत्योगी से कहा विद्वान आपके कई सरे चर्चे मेने सुने हैं। आप जैसे विद्वान पुरुष के लिए मैं एक पुस्तक लाया हु जिसके पर हम विवाद करेंगे।
विद्वान ने विनंती करते हुए तेनालीराम से पुस्तक का नाम जानने की चेस्टा की। तेनालीराम ने पुस्तक का नाम बताया “तिलक्षता महिषा बंधन” उस विद्वान ने अपने जीवन ने इसके पहले इस पुस्तक का नाम तक नहीं सुना था न की पढ़ा था। विद्वान बड़ी ही दुविधा में पड गया की, कभी न पढ़ी किताब के बारे में विवाद करू तो कैसे करू !!

फिर भी वह साहस कर बोला , यह किताब मैंने पढ़ी हैं बहुत बहरीन हैं। इस पर चर्चा करने का मजा आने वाला हैं। परन्तु मेरी यह गुज़ारिस हैं की , आज यह वाद-विवाद रोक दिया जाए। में कुछ दिन का समय चाहता हु , क्यों की इसकी महत्व बाते में भूल चूका हु। उस विद्वान ने राजा से विनंती की , कल प्रातःकाल को यह विवाद का आयोजन किया जाए यह मेरी गुजारिस हैं।
तेनालीराम के मंतव्य के अनुसार उसे लगा था की , विद्वान पूरी तरह से विवाद के लिए तैयार होगा।परन्तु अतिथि देवो भव : के भाती अतिथी के विचार को मानना तेनालीराम का कर्तव्य था। परन्तु विद्वान को आभास था की वाद-विवाद में वह हार जाएगा उसे पता था की पंडित के सामने मेरी एक न चलेगी इस लिए वो नगर छोड़ कर भाग गया। अगले दिन विद्वान की राजमहल में गेरहाजरी से तेनाली ने राजा से भरी सभा में कहा महाराज, घमंडी हमारा विजयनगर छोड़ हार ने के डर से नो-दो -ग्यारस हो गया होगा।
राजा ने तेनाली को आश्चर्य से पूछा , हमें तो उस पुस्तक के बारे में बताओ जिसके देख कर वह विद्वान नगर छोड़ कर भाग गया!! तेनाली ने उत्तर देते हुए कहा ,असल में ऐसी कोई किताब नहीं हैं। यह मेरी बनाई हुई योजना थी।

वास्तव में तिलक्षता का मतलब है , (सीसम की सुखी लकडिया) और महिषा बंधन का अर्थ (भैसो को बांधना )हैं। वास्तव में मेरे हाथ में सीसम की लकड़िया थी जिसे भेस को बांधने वाली रस्सी से बाँधी गई थी। मलमल के कपडे की वजह से पुस्तक हैसी लग रही थी। तेनाली राम ली बुद्धिमत्ता देख कर सब नगरवासी हसी न रोक पाए और तेनाली ने एक बार फिर विजयनगर की शान बचाई। राजा ने प्रशन्न हो कर कई सारी किताबे तेनालीराम को सौगात के रूप में दी।
- बोध : कायर के भाती मुसीबत से मुँह न मोड़ कर , सामना चाहिए।
3 : कितने कौवे – Tenali Raman Stories In Hindi
कितने कौवे : एक दिन महाराज कृष्णदेवराय और तेनालीराम दोनों राजदरबार में बैठे थे। महाराज तेनाली को टेढ़े-मेढ़े प्रश्न पूछ रहे थे , उस प्रश्नो के उत्तर तेनाली बहुत ही चतुराई से दे कर महाराज को स्तब्ध कर देते थे। वह दिन इस तरह बड़े आराम से बिता , कुछ दिन बीतने के बाद फिरसे महराज ने तेनाली को बुलाया और प्रश्न पूछते हुए कहा , तेनाली! हमारे विजयगर में सभी मिलाकर कितने कौवे होंगे ! क्या तुम इसका उत्तर दे सकते हो ? तेनालीराम ने बड़े ही निखालस भाव से कहा , जी हुज़ूर जरूर बता सकता हु। महाराज ने कठोर भाव से कहा मुझे सही गिनती चाहिए।

तेनालीराम बोला , महराज एक दम सही गिनती ही बताऊंगा। राजा ने दो दिन की महोलत दी थी , तीसरे दिन तेनाली को राजा के द्वारा पूछे हुए प्रश्न का जवाब देना था। ओर फैसले के दिन सभी नगरवासी को अंदाजा था की तेनालीराम इस उत्तर का जवाब न दे पाएगा , भला परिंदो की गिनती कैसे संभव हैं?
नक्की की हुई तारीख को दरबार फिरसे जमा हुआ , सभी मंत्री , महामंत्री नगरवासी उपस्थित थे। सभी की नज़र तेनालीराम की ओर थी , सभी को उत्तर जानने की बेताबी थी। तेनाली ने उतर देते हुए कहा , महाराज हमारी पूरी राजधानी विजयनगर में एक लाख पचास हजार नौ सौ निन्यानबे कौवे हैं। महाराज मेरे जवाब पर कोई संदेह हो तो आप किसी के जरिए गिनवा सकते हैं।

महराज ने कहा अगर गिनती में भूल हुई तो!! तेनालीराम ने कहा मेरी गिनती में भूल हो ऐसा कुछ हो नहीं सकता। अगर गलती से भी गिनती में कुछ भूल हुई तो उसके पीछे भी कुछ कारण होगा।
तेनाली ने विस्तार हुए कहा कि , अगर राजधानी में मेरी गिनती के मुताबित कौवे न हुए , उससे ज्यादा हुए तो यह समझना की कौवे के कोई रिश्तेदार होंगे या तो फिर कौवे के मित्र।
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अगर कौवो की संख्या कम हुई तो हमारे राज्य के कौवे उसके रिस्तेदारो से मिलने के लिए गए हैं। वरना कौवो की संख्या एक लाख पचास हजार नौ सौ निन्यानबे ही हैं। सभी नगरवासी और उपस्तित मंत्री सतब्ध रह गए। तेनालीराम हर बार की तरह इस बार भी अपनी बुद्धिमत्ता से बच निकला।
- बोध : अपनी बुद्धिमता से किसी भी प्रश्नो का निवारण लाया जा सकता हैं।
4 : कृष्णदेवराय की उदारता – Tenali Raman Stories In Hindi
कृष्णदेवराय की उदारता : राजा कृष्णदेव राय तेनालीराम की प्रतिभा से तेनाली रामन को बहुमूल्य उपहार समय-समय पर देते रहते थे। एक बार तेनाली राम को राजा कृष्णदेव राय ने उनकी बुद्धिमत्ता से प्रभावित होकर पांच हाथी सौगात स्वरूप भेंट किए। उपहार पाकर तेनाली रामा बहुत ही सोच में पड़ गया सोचा कि राजा ने मुझे अचानक ऐसा बहुमूल्य उपहार क्यों दिया।
तेनाली रामन कितना धनवान नहीं था कि सभी हाथियों का खर्च वह अकेले कर सके। क्योंकि हाथियों को खिलाने के लिए बहुत अनाज की आवश्यकता होती थी। तेनाली रामा सिर्फ और सिर्फ अपने परिवार का ही पालन पोषण कर सके उतना ही सक्षम था। फिर भी अपने राजा का इनाम इनकार ना करते हुए , पांचों हाथियों को लेकर अपने घर पहुंचा।

साथियों के साथ तेनाली रमन को देखकर उसकी पत्नी ने तेनालीराम से शिकायत की कि हम घर के सदस्य भी ठीक से रह नहीं पाते तो आप इन हाथियों को रखने का बंदोबस्त कैसे करेंगे? हाथियों की देखभाल करने के लिए नौकर भी तो नहीं रख सकते। हम अपने भोजन की भी व्यवस्था बड़ी मुश्किल से करते हैं , हाथियों के भोजन का बंदोबस्त कैसे करेंगे? यदि हमारे राजा कृष्णदेव राय ने इन हाथियों की जगह पांच गाय भेंट में दी होती तो उसके दूध से हम अपना भरण पोषण तो कर पाते।
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तेनालीराम की पत्नी सत्य कह रही थी। तेनालीराम ने हाथियों से पीछा छुड़ाने की योजना बना ली। तेनालीराम ने अपनी पत्नी से कहा कि इन सभी साथियों को मां देवी के मंदिर में समर्पित कर आता हू। काली मां के मंदिर पहुंचकर तेनालीराम ने सभी साथियों को तिलक किया और पांचों हाथियों को नगर में घूमने के लिए छोड़ दिया। हाथियों को भोजन ना मिलने के कारण एकदम दुर्बल हो गए। यह हाथियों को देखकर विजयनगर के वासियों ने राजा को जाकर सभी बात विस्तार पूर्वक बताई।

राजा ने हाथियों की यह दुर्दशा भरी बात सुनकर तेनाली राम से बड़े ही अप्रसन्न हो गए। तुरंत ही राजा ने तेनालीराम को दरबार में बुलाया और पूछा कि तेनालीराम!! तुमने हाथियों के साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया? आपके दिए हुए उपहार का अस्वीकार करके आपका अपमान मैं नहीं कर सकता था। साथियों को संभालना मेरे जैसे आम आदमी का आम आदमी का काम नहीं है। पांच हाथियों के देखभाल मैं अकेला नहीं कर सकता था , किसी कारण से मैंने पांचो हाथियों को मां देवी के चरणों में समर्पित कर दिया था। अगर आप मुझे पांच हाथियों की जगह पांच गाय उपहार में देते तो वह मेरे परिवार का भरण पोषण करने में सहायता देता।
यदि मैं तुम्हें उपहार के रूप में गाय प्रदान करता फिर भी तुम गायों के साथ भी यह यह दुर्व्यवहार करते। उत्तर देते हुए कहा , नहीं महाराज गाय तो पवित्र जानवर है। और गाय का दिया हुआ दूध मेरे बच्चे को पालने में मेरे काम आता। उल्टा मैं इसके बदले आपका जीवन भर रूणी रहता। राजा अपने सेनापति से आदेश देते हुए कहा कि तेनालीराम के पास से हाथियों को लेकर गाय प्रदान की जाए। राजा के यह उदार सर को देखकर तेनालीराम बहुत ही प्रसन्न हो गया।
- बोध : यह कहानी राजा कृष्णदेव राय की उदारता का उदाहरण है।
5 : तेनालीराम की घोषणा – Tenali raman stories in hindi
तेनालीराम की घोषणा : राजा कृष्णदेव राय की सभा मंत्री महामंत्री और अपने रत्नों से भरी हुई थी। राजा कृष्णदेव राय से पुरोहित ने कहा , महाराज मेरा सुझाव है कि हमें हमारी विजयनगर की वर्षा के साथ सीधे ही जुड़ना चाहिए। पुरोहित कि यहां अचंभित बात सुनकर सभी मंत्री गण चौक गए। पुरोहित की बात का भावार्थ वह समझ नहीं पाए। पुरोहित ने अपनी बात विस्तार से बताते हुए बोला , दरबार में जो भी चर्चा विचारणा होती है वह सभी प्रजाजन तक पहुंचाई जाए।
महामंत्री ने कहा महाराज सुझाव तो उत्तम है। तेनालीराम जैसा उमदा व्यक्तित्व ही इस कार्य के लिए योग्य है। राजा ने मंत्री का मान रखते हुए यह बात स्वीकार की और तेनालीराम को इस कार्य के लिए नियुक्त किया। तेनालीराम को जनहित की सभी बातें , जो राज दरबार में होती थी, सभी बातें लिखित रूप में गांव के चौराहे के पास जाकर तभी बात प्रजाजन को जिनको सुनवानी थी। तेनालीराम पहले से ही मंत्री की सभी चाल समझ गया था। उसे पता था कि मंत्री ने उसे जबरदस्ती फंसाया है।

तेनालीराम ने अपनी योजना बनाई। सप्ताह के आखिरी दिन उसने मुनारी करने के लिए एक पर्चा थमा दिया । दरोगा ने पर्चा मुनादी वाले को पकड़ कर कहा जाओ और मुनादी करा दो।मुनादी वाला यह घोषणा सुनकर तुरंत ही गांव के चौराहे के पास पहुंचा और अपने साथ लाए हुए ढोल को पीट-पीटकर मुनादी शुरू कर दी और बोला , ”विजय नगर के वासियों प्रजा जनों ध्यान से सुनो”। महाराज की आज्ञा है कि राज दरबार में जो भी प्रशासन के हित के लिए निर्णय लिए जाएंगे वह सभी निर्णय की बात विजय नगर की प्रजा को ज्ञात हो। उन्होंने इस अहम कार्य के लिए तेनाली रामन को चुना है और मैं तेनाली रामन के आज्ञा से यह समाचार सब को सुना रहा हूं कृपया ध्यान से सुने।
हमारे प्रजा पर भी महाराज चाहते हैं कि उसकी प्यारी प्रजा के साथ पूरी तरह से न्याय हो और अपराधी को उसकी सजा का कड़े से कड़ा दंड मिले। इस मंगलवार को राजदरबार में इस बात को लेकर बड़ी गंभीर चर्चा हुई थी। महाराज चाहते हैं कि इस नई न्याय की प्रणाली को हमारी पुरानी न्याय व्यवस्था की प्रणाली में अच्छे से अच्छी तरह से शामिल किया जाए।

राजा ने इस विषय पर पुरोहित जी से पौराणिक न्याय व्यवस्था के बारे में जाने ना चाहा परंतु वह दरबार में शब्द बैठे थे। महाराज कृष्णदेव राय को पुरोहित को इस हालत में बैठे देख कर गुस्सा आ गया। दरबार मंत्री गण और राजन से भरा हुआ था और राजा कृष्णदेव राय ने भरी सभा में पुरोहित जी को फटकारा। गुरुवार को विजयनगर की सुरक्षा के हेतु बड़ी ही गहन चर्चा हुई परंतु हमारे सेनापति के उपस्थित न होने के कारण यह चर्चा पूर्ण ना हो सकी। इसलिए राजा कृष्णदेव राय ने मंत्री को कठोर शब्द में आदेश देते हुए कहा अगली राज्यसभा में दरबार में सभी समय पर हाजिर होने चाहिए। इस प्रकार राजा के आदेश से जगह-जगह पर मुनादी की घोषणा होने लगी।
हर मुनादी में तेनालीराम का जिक्र होता था। तेनालीराम के जिक्र की बात मंत्री सेनापति और पुरोहित को पता चली। तीनों की बाजी उल्टी पड़ गई और वह सोचने लगे कि जनता यह समझ रही है कि तेनालीराम दरबार में सब का प्रमुख है। दूसरे ही दिन जब राज दरबार इकट्ठा हुआ तभी पुरोहित ने राजा के सामने सविधान रखते हुए कहा राजकाज की सभी बातें गोपनीय होती है उनको प्रजा के सामने रखना मेरे मंतव्य से ठीक नहीं। इन सभी गोपनीय बातों को प्रजा से गुप्त रखा जाए तो ही बेहतर है।
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तेनाली राम बड़े ही सहजता से खड़ा हुआ और बोल पड़ा बहुत अच्छे मंत्री जी , आपको शायद याद नहीं परंतु आपके नाम का ढोल पीटा गया इसीलिए आपको यह बात याद आई। तेनाली की यह बात सुनकर दरबार में उपस्थित सभी सभी मंत्री , दरबारी हंस पड़े। अपनी ही चाल उल्टी पड़ने पर मंत्री की शक्ल पर अफसोस की बड़ी निराशा छाई हुई थी। राजा कृष्णदेव राय भी तेनालीराम की सारी बात समझ गए थे । वह भी मन ही मन तेनालीराम की प्रशंसा एवं सराहना कर रहे थे।
- बोध : जो खड़ा कोदता हैं वो स्वयं उसमे गिरता हैं।
6 : तेनालीराम की सुजबुझ – Tenali raman stories in hindi
तेनालीराम की सुजबुझ : एक यात्री विजय नगर के राज दरबार में राजा कृष्णदेव राय से मिलने के हेतु आया। पहरेदार होने राजा को सूचना दी कि , कोई यात्री आपसे मिलना चाहता है । राजा ने उस यात्री को मिलने की अनुमति दी। वहां अनजान यात्री दिखने में बहुत लंबा और शरीर से एकदम पतला था। शरीर का रंग नीला था । राजा के सामने उपस्थित होकर राजा से बोला , ”मेरा नाम न्यू केतु है और मैं विश्व की यात्रा करने हेतु निकला हूं”। विश्व के कई देशों में यात्रा कर कर मैं यहां विजय नगर में पहुंचा हूं।

मैं यहां विजयनगर का न्याय तंत्र और विजयनगर के राजा यानी कि आपसे मिलने आया हूं क्योंकि मैंने विजय नगर के बारे में उसके न्याय तंत्र के बारे में बहुत ही सुना है। सुना है कि यहा के राजा बहुत ही उदार स्वभाव के हैं। इसीलिए आपसे मिलने और यह साम्राज्य देखने की बड़ी आशा के साथ यहां आया हूं। महाराजा ने यात्री का तहे दिल से स्वागत किया, अपना शाही अतिथि जारी किया।यात्री का एक सपना था कि वह विजयनगर के राजा से मिले और आज वहां विजयनगर के राजा के सामने मुखातिब होकर गदगद हो गया था इसी गदगद कंठ से यात्री बोला , “महाराज मैं जादूगर हूं अपनी जादुई शक्तियों से मैं परियों को यहां बुला सकता हूं”।
राजा उस यात्री नीलकेतु की बात को सुनकर परियों से मिलने के लिए बहुत ही उत्सुक थे इसलिए राजा ने नील केतु से पूछा मुझे प्रिया देखने के लिए क्या करना होगा , नीलकेतु!! महाराज के प्रश्न के उत्तर देते हुए नीलकेतु ने कहा महाराज आपको मध्य रात्रि को विजय नगर के बाहर जो तालाब है , उस तालाब पर आना होगा वो भी अकेले आना होगा। तभी जाकर में आपको उन परियों से मिलवा सकता हूं। राजा यह जादू देखने के लिए बड़े ही उत्सुक थे इसलिए राजा ने बात मान ली।

उसी रात रात्रि का तीसरा पहर बीत रहा था और राजा अपने घोड़े पर सवार होकर तालाब की ओर चल पड़े। पुराने किले से घेरा हुआ वह तालाब विजय नगर के उत्तरी दिशा में था। कृष्णदेव राय के वहां पहुंचने पर नीलकेतु उस पुराने खंडहर से बाहर निकला और महाराज का स्वागत किया। नीलकेतू ने कहा महाराज , अपने वादे के मुताबिक मेने परियों को बुला लिया है।सभी किले के अंदर है और बहुत ही जल्द आपके सामने नृत्य पेश करेगी। महाराज जी सुनकर आश्चर्यचकित हो गए क्योंकि यात्री ने कहा था कि वह महाराज की उपस्थिति में ही परियों को को बुलाएगा। “यदि महाराज की चाहे तो मैं फिर से कुछ परियों को भुला दूंगा ऐसा नीलकेतू ने कहा”।
महाराज अपने घोड़े से उतरकर नील केतु के साथ जाने के लिए आगे बढ़े। जैसे ही महाराज में आगे बढ़ने के लिए एक कदम थमाया वहां पर ताली की आवाज सुनाई दी और तुरंत ही विजयनगर की विशाल सेना ने नील केतु को पकड़कर बेडियो से जकड़ लिया।
यह सब कुछ क्या हो रहा रहा है महाराज ने आश्चर्य से पूछा !! तभी बड़े पेड़ के पीछे छुपे हुए तेनालीराम बाहर आए और महाराज से कहा , मैं आपको बताता हूं महाराज जी यह सब क्या हो रहा है । यह नीलकेतु हमारे दुश्मन देश का रक्षा मंत्री है । असली बात तो यह है कि किले के अंदर कोई भी पर या नहीं है वास्तव में इन विरोधी देश के सिपाहियों को परियों के रूप में हाथ में हथियार धारण कर आप को मारने की योजना इस नीलकेतू ने बनाई थी।

राजा ने बड़ी ही भाव से तेनालीराम का आदर करते हुए एक बार फिर से धन्यवाद माना। परंतु राजा ने कहा , “तेनाली यह बताओ की तुम्हें यह सब कैसे पता चला?”तेनालीराम ने उत्तर देते हुए कहा महाराज वह यात्री जब भी हमारे राज दरबार में आया था तभी उसके शरीर का रंग नीला था। रक्षा मंत्री अपने पकड़े जाने के डर से बहुत ही डरा हुआ था इसीलिए उसके उसके शरीर से पसीना छूट रहा था। पसीना निकलने के कारण उसके शरीर के कई हिस्सों से नीला रंग उसके शरीर से हट गया था और शरीर का असली रंग दिखाई दे रहा था ।
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वह यात्री जग राजदरबार छोड़कर जा रहा था तभी हमारे सैनिकों को मैंने यात्री का पीछा करने के लिए कहा था। मेरे भेजे हुए गुप्त चर ने मुझे आकर बताया की वहां विरोधी देश का रक्षा मंत्री है और वह हमारे राजा कृष्णदेव राय को मारने की योजना बना रहे हैं। इस प्रकार मुझे सारी योजना की भनक लग गई। राजा ने एक बार फिर तेनाली के कार्य से प्रभावित होकर एक बार फिर धन्यवाद दीया।
- बोध : किसी ढोंगी के बहकावे में न आकर सुजबुझ से काम लेना चाहिए।
7 : सिमा की चौकसी – Tenali raman stories in hindi
सिमा की चौकसी : विजय नगर में पिछले कई दिनों से दुर्घटनाएं घट रही थी। इस दुर्घटनाओं के घटने के कारण राजा कृष्णदेव राय काफी दिनों से परेशान थे। इस समस्या का निवारण निकालने के लिए उन्होंने सर्वश्रेष्ठ मंत्री परिषद बुलाई और इन घटना को कैसे रोका जाए इसका मंतव्य सबसे लिया। दुश्मन देश के गुप्तचर भी यही कार्य कर रहे थे।
इकट्ठे किए गए मंत्री में से एक मंत्री का सुझाव था कि हमें नम्रता से नहीं परंतु शक्ति से काम लेना चाहिए। विजय नगर के सेनापति का यह सुझाव था कि , अपनी सीमा के सुरक्षा हेतु सैनिकों की संख्या बढ़ा दी गई। राजा ने इस सुझाव को सुनकर तेनालीराम के सामने देखा। तेनालीराम ने अपना सुझाव देते हुए कहा कि मेरे हिसाब से यह बेहतर होगा कि हम अपनी सीमा के बाहर एक लंबी और बड़ी मजबूत दीवार बना दे।तेनालीराम का यह विचार मंत्री ने अस्वीकार किया , फिर भी राजा कृष्णदेव राय को तेनालीराम पर पूरा भरोसा था इसलिए तेनालीराम के सुझाव को माननीय रखा गया।

यह आदेश दिया कि , हमारी सीमा पर एक लंबी मजबूत सी दीवार बनाई जाए और यह कार्य मंत्रीजी की निगरानी में होगा। और कार्य पूरा करने का भार तिनाली को 6 महीने की मुद्दत देकर सपा गया। दो महीने बीतने पर भी दीवार का काम अटका हुआ था किसी ने यह बात राजा को बताई। राजा ने तुरंत ही तेनालीराम को भरी सभा में उपस्थित किया मंत्री , सभी प्रजा जन राज दरबार में हाजिर थे।राजा ने तेमा तेनाली से पूछा दीवार का काम किस कारण अटका हुआ है ?
महाराज मांगते हुए तेनाली ने कहा महाराज दीवार के बीच में एक बड़ा सा पहाड़ आ गया है पहले में उसे हटवाने का काम कर रहा हूं। राजा ने अचंभित होकर तेनाली से कहा पहाड़ तो हमारी सीमा पर नहीं है। मौके का फायदा उठाकर मंत्री जी बोले महाराज तेनाली बावरा हो गया है। तेनाली मंत्री के यहां कठोर शब्द सुनकर भी चुप रहे उन्होंने सजदा से ताली बजाई तेनाली के ताली बजाने के बाद थोड़ी देर में सैनिकों से गिरे 20 व्यक्ति राजा कृष्णदेव राय के सामने उपस्थित हो गए। राजा ने तेनाली से पूछा यह सब कौन है ?

“पहाड़!! तेनाली बोला यह दुश्मन देश के व्यक्ति है मैं दिन भर जितना भी कार्य करवाता था रात को यह लोग मेरे बनाई हुई दीवार तोड़ देते थे। बड़ी मुश्किल से पकड़ में आए हैं। सभी के पास से जानलेवा हथियार भी मिले हैं इनमें से आधे तो कई बार पकड़े जा चुके हैं मगर उसे सजा क्यों नहीं दी गई , यह कारण मंत्री जी बताएंगे । मंत्री जी कुछ ना बोले परंतु तेनाली ने इसका उत्तर देते हुए कहा ” मंत्री जी के सिफारिश करने की वजह से इन लोगों को छोड़ दिया जाता था”। सच को सुनकर मंत्री जी के होश उड़ गए।राजा को सारी बात समझ में आ गई और उसने मंत्री जी से यह काम छीन कर तेनालीराम को सौंप दिया। और राजा ने तेनालीराम को एक बार फिर प्रोत्साहित किया।
- बोध : सभी कार्य केवल विश्वास के भरोसे नहीं छोड़ना चाहिए।
8 : तेनालीराम की कला – Tenali raman stories in hindi
तेनालीराम की कला : विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय को चित्रकारी बहुत ही पसंद थी। चित्रकाम करने के लिए उन्होंने अपने राज दरबार में एक चित्रकार को बुलवाया । चित्रकार ने बनाए हुए अपने पुराने चित्र देखकर इन सभी नगर जिन्होंने बहुत ही प्रशंसा की परंतु तेनालीराम को उस चित्रकार पर कुछ शंका थी । उनमें से एक चित्र में प्राकृतिक दृश्य था।

तेनालीराम अनुचित्र के सामने खड़ा हो गया और उस चित्रकार से पूछा “इस चित्र का दूसरा पक्ष कहां है ?” राजा ने तेनाली का उपहास उड़ाते हुए कहा तुम्हें इतना भी नहीं मालूम उस दृश्य को आभास करते हैं। तेनालीराम थोड़े कठोर शब्द में बोला , “अच्छा तो चित्र कैसे बनाते हैं”। इस चित्रकार की चित्रकला देखकर तेनाली को भी चित्रकला सीखने का मन हुआ और उसने सीखना शुरू किया। थोड़े महीने बीते फिर तेनालीराम ने राजा से कहा मैं कई दिन से चित्रकला सीख रहा हूं अगर आपकी आज्ञा हो तो मैं हमारे राजमहल की दीवार पर कुछ अपने तरीके से चित्र बनाना चाहता हूं।
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तेनालीराम की बात की सराहना करते हुए राजा ने कहा वाह , यह तो बहुत अच्छी बात है।राजा ने आज्ञा देते हुए कहा कि जिन दीवार के रंग थोड़े-थोड़े बिखर गए हैं उस दीवार पर तुम चित्र बना सकते हो। तेनालीराम ने सभी दीवार पर चित्र बना दिए। तेनालीराम ने शरीर के विभिन्न अंगों के चित्र अलग-अलग जगह पर बना दिए कहीं शरीर का हाथ था तो कहीं पर तो कहीं आंख थी। अपनी चित्रकारी पूरी की और राजा को अपने चित्र देखने के लिए तेनाली राम ने आमंत्रित किया।

महल की राज दीवारों पर यह तरह तरह के विचित्र चित्र को देखकर राजा को बड़ी ही निराशा हुई। राजा ने थोड़े कठोर शब्द में कहा “तेनाली यह तुमने क्या कर दिया , यह कैसी तस्वीर बनाई है”!! बड़े ही प्रेम और भाव से उत्तर देते हुए कहा बाकी सभी शरीर के अंग की कल्पना करनी पड़ती है । तेनाली राजा को एक खाली दीवार पर ले गया और उस दीवार पर रंगों से कुछ रेखाएं बना दी। राजा ने चढ़कर पूछा तेनाली यह क्या है ? तेनाली ने कहा यहां घास चरती हुई गाय है ।
महाराज ने बताया कि मुझे तो यहां कहीं भी गाय नहीं दिख रही । तेनाली ने कहा गाय घास खाकर वापस अपने बारे में चली गई , ऐसी कल्पना कर लीजिए हो गया ना चित्र पूरा। यह सुनकर राजा को अपनी भूल का आभास हुआ और उसे लगा कि तेनाली उस दिन बिल्कुल ठीक कह रहा था कि एक चित्र को देखकर दूसरे चित्र का आभार करना नामुमकिन है।
- बोध : बात के विभिन्न पहलु होते हैं , हमें हमेशा सभी बात का सकारात्मक पहलु उठाना चाहिए ।
9 : कुवे का विवाह – Tenali raman stories in hindi
कुवे का विवाह : विजयनगर राज्य बड़े ही कुशलता से चल रहा था। एक दिन विजयनगर के राजा कृष्णदेव और तेनालीराम के बीच किसी बात को लेकर अनबन हो गई। तेनाली रामन इस बात से रूठ कर अपने घर चले गए। इस बात को हुए कुछ दिन के बाद राजा मन ही मन बहुत ही परेशान रहने लगे।राजा ने अपने सेनापति को आदेश दिया कि तुरंत ही मुझे तेनालीराम से मिलना है और एक टुकड़ी को तेनालीराम को खोजने भेजा। सिपाही के बहुत मेहनत के बाद आसपास छानबीन करने के बाद तेनाली राम नहीं मिला।

राजा को एक तरकीब सूझी , “सभी गांव में ढोल से पीटकर मुनादी करवाई की हमारे राजा ने कुवे का विवाह रचा है इसलिए गांव के उन सभी प्रमुख अपने-अपने कुओं को लेकर हमारे राजमहल में पहुंचे। जो भी प्रमुख इस आज्ञा का पालन करेगा उसे बड़ा ही कीमती इनाम दिया जाएगा”। इस मुनादी को सुनकर गांव के सभी लोग परेशान हो गए । सब सोचने लगे कि कुए को राज दरबार में ले जाना कैसे मुमकिन है!!
जिस गांव में तेनाली भेष बदलकर रह रहा था उस गांव में भी मुनादी सुनवाई गई। चतुर तेनालीराम को लत लग गई कि यह योजना महाराज ने मुझे खोजने के लिए बनाई है। तेनालीराम गांव के मुखिया के पास गया और मुखिया से कहा आप चिंता ना करें आपने मुझे आश्चर्य दिया है इसलिए आपका यह कार्य में करूंगा । मैं आपको एक तरकीब बताता हूं अगल-बगल के सभी मुखिया को इकट्ठा कर आप राजदरबार की ओर प्रस्थान करने की तैयारी कीजिए ।

अपनी योजना के मुताबिक सभी मुखिया इकट्ठा हुए और विजयनगर की ओर चल पड़े तेनालीराम भी इस टुकड़ी में शामिल था। राजधानी पहुंचकर सभी राजधानी के बाहर एक जगह पर ठहर गए। मुखिया के कहने पर एक आदमी को राज दरबार में भेजा गया। उसने बताया कि महाराज आपकी आज्ञा का पालन करते हुए हमारे गांव के कुएं विवाह में प्रतियोगी बनना चाहते हे जोकि अभी बाहर डेरा डाले हुए खड़े हैं। आप मेहरबानी करके राजकीय कुए को अगवानी करने के लिए बाहर भेजें , ताकि हमारे गांव के पूर्व को राजमहल में आने की अनुमति मिल सके।
इस आदमी की बात सुनकर राजा को तुरंत ही गलत लग गई कि यह तेनालीराम की ही चाल है। राजा ने कठोर शब्द में आदमी से पूछा सच-सच बताओ यह योजना किसने दी है। शर्मा हुआ वह आदमी बोल पड़ा राजन थोड़े दिन पहले हमारे गांव में कोई आदमी आकर ठहरा है उसने यह तरकीब बताई है। आदमी की बात से प्रसन्न होकर राजा स्वयं अपने घोड़े पर बैठकर तेनालीराम को वापस अपने राज महल में ले आए। शर्त के मुताबिक सभी गांव वाले को सौगात देकर विदा किया।
- बोध : किसी भी बात को लेकर झगड़ने के वजाए उसका निवारण करना चाहिए।
10 : बोलने वाला भूत – Tenali raman stories in hindi
बोलने वाला भूत : दशहरे का त्यौहार नजदीक आ रहा था। राजा कृष्णदेव राय की इच्छा थी कि इस बार दशहरा बड़ी ही धूमधाम से मनाई जाए। राज दरबार में किसी दरबारी ने दशहरा मनाने की कुछ बात की मौके का फायदा उठाकर राजा कृष्ण राय बोले मेरी यह इच्छा है कि हम सब इस वर्ष का दशहरा बड़े ही धूमधाम और आनंद उल्लास के साथ मनाए।
मेरी यह विनती है की सभी दरबारी , सेनापति और मंत्री अपनी अपनी झांकियां सजाए। जिस किसी की भी झांकी सबसे उम्दा होगी उसे विजय नगर की ओर से पुरस्कार दिया जाएगा। राजा की यह बात सुनकर दूसरे ही दिन सभी अपनी-अपनी झांकियां सजाने में मग्न हो गए। तभी अपने अपने तरीके से अच्छे से अच्छी मेहनत कर झांकियां तैयार कर रहे थे। राजा दशहरा के दिन सभी की झांकियां देखने के लिए हाजिर हुए परंतु तेनालीराम की झांकी दिखाई न दी।

सोच में पड़ गए और अपने दरबारी से पूछा हमारा तेनालीराम कहीं नजर नहीं आ रहा। यहां तक उसकी झांकी भी दिखाई नहीं दे पड़ी । आखिर वाहे कहां ?
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मंत्री ने बड़े ही भाव से कहा महाराज इधर उस पीले के पास काले रंग की एक झोपड़ी है और उसके बगल में एक खूबसूरत सा भूत खड़ा है यह तेनालीराम की झांकी है। राजा ने तेनालीराम से प्रश्न करते हुए कहा तेनालीराम यह तुमने क्या बनाया है क्या यही है तुम्हारी झांकी। तेनालीराम ने नम्र भाव से कहां जी महाराज यही है मेरी झांकी। और और मैंने यह क्या बनाया है इसका उत्तर भी यह भूत देगा, तेनालीराम ने भूत से पूछा “बोलता क्यों नहीं महाराज के प्रश्न का उत्तर दें” ।
मैं अहंकारी पापी रावण की छाया आया हूं। मेरे ही मरने की खुशी में तुम लोग दशहरे का त्यौहार मनाते हो परंतु मैं अभी मरा नहीं हूं जब कभी मरा था उसके बाद तुरंत ही पैदा हो गया था। इस पूरे विश्व में गरीबी अत्याचार उत्पीड़ित भुखमरी आदि सब कुछ मेरा ही किया धरा है । अब मुझे मारने वाला है ही कौन इतना कहकर हंसने लगा।

राजा भूत की बातें सुनकर बहुत ही क्रोधित हो गए। सेनापति क्वालिस देते हुए कहां मेरी तलवार ना मिस पूजा के अभी के अभी टुकड़े-टुकड़े कर देता हूं ।भूत आएगा मेरे टुकड़े-टुकड़े कर देना इसे क्या सभी ब्रेजा जन के दुख दूर हो जाएंगे ? इतनी बात कर उस भूत में अंदर छिपा हुआ आदमी बाहर आया और महाराज से क्षमा मांगने लगा यही सच्चाई है पर यह भूत इस सच्चाई को आपके सामने पेश करने का एक नाटक था।
महाराज ने कहा नहीं यह नाटक नहीं परंतु कठोर सत्य था यही सबसे अच्छी झांकी है और मैं तेनालीराम को प्रथम पुरस्कार नियुक्त करता हूं। राजा की इस बात से सभी दरबारी आश्चर्य से एक दूसरे का मुंह काटने लगे। एक बार फिर तेनालीराम ने समाज का बड़ा ही कठोर सच राजा के सामने रखकर स्वयं को सबसे अलग और उम्दा साबित किया।
- बोध : सच कितना भी कड़वा क्यों ना हो , सच को स्वीकार ने में ही भलाई है।
11 : उधार का बोज – Tenali raman stories in hindi
उधार का बोज : विजयनगर का शासन राजा कृष्णदेव राय की निगरानी में बहुत ही शान से चल रहा था। एक बार किसी समस्या में फंसे हुए थे राई राम ने राजा कृष्णदेव राय को विनती कर कुछ रुपए राजा के पास से उधार लिए । तेनालीराम ने पैसा लौट आने का समय राजा को लिया था वह समय निकट आ रहा था। परंतु तेनालीराम के पास राजा को लौटाने के लिए कुछ नहीं था और ना ही वह कुछ प्रबंध कर पाया था।
Tenali raman stories in hindi
तेनाली के मन में पैसा चुकाने के लिए एक सुझाव आया। एक दिन राजा कृष्णदेव राय को तेनाली की पत्नी का एक पत्र मिला उस पत्र में तेनाली के बीमार होने के बारे में लिखा गया था। तेनालीराम कई दिनों से राज दरबार भी उपस्थित ना हुआ था। इसलिए राजा ने सोचा मैं स्वयं ही तेनाली के घर जाकर की तबीयत का हालचाल पूछता हूं। राजा तेनालीराम के घर पहुंचे उन्होंने देखा तेनालीराम पलंग पर लेटा हुआ है।राजा ने तेनालीराम की पत्नी को प्रश्न पूछा , “तेनाली की स्थिति कैसे हुई ?” तेनाली की पत्नी ने बड़े ही दुख से बताया कि महाराज मेरे पति आपके दिए हुए पैसों को वापस ना लौटाने पर बहुत ही चिंतित है। यही चिंता उसे अंदर ही अंदर सता रही है जिसकी वजह से यह बीमार हो गए।

राजा ने तेनालीराम को आश्वासन देते हुए कहा , तेनाली पैसे की चिंता छोड़ो! मेरे उधार की चिंता तुम मत करो , चिंता छोड़ो और बहुत ही जल्द ही स्वस्थ हो जाओ।
महाराज की यह बात सुनकर तुरंत ही तेनाली पलंग से उठ खड़ा हुआ और कहां महाराज धन्यवाद ।महाराज जी हर देखकर एकदम गुस्से में आ गए औरतें हाली से कहा तेनाली तुम मेरे साथ बीमार पड़ने का नाटक कर रहे थे।
नहीं महाराज मैंने आपसे किसी भी प्रकार का झूठ नहीं बोला। मैं सचमुच ही आपके दिए गए उधार के बोझ में बीमार हो गया था। आपके मुंह से मुझे इस उधार से छूटने की बात सुनकर मेरी चिंता खत्म हो गई। मेरे उधर का बोझ भी मेरे सिर से गायब हो गया। इसी वजह से मैं अपने आप को स्वस्थ महसूस कर रहा हूं एवं प्रसन्न हूं।
हर बार की तरह इस बार भी राजा के पास तेनाली को कहने के लिए कुछ न था , और राजा तेनाली की इ स पर मुस्कुरा दिए।
- बोध : अपने स्वार्थ के खातिर झूठ बोलना पाप है।
12 : कौन बड़ा – Tenali raman stories in hindi
कौन बड़ा : राजा कृष्णदेव राय एक बार अपनी महारानी के साथ महल में विराजमान थे। राजधानी रानी से कहा की सचमुच हमारे दरबार में तेनालीराम जैसा कोई भी बुद्धिमान नहीं है आज तक इसी तेनालीराम को हराया नहीं है। असम का राजधानी ने सुझाव देते हुए कहा महाराज कल तेनालीराम को भोजन करने हेतु महल में न्योता दे । “मैं उसे जरूर हरा दूंगी”। राजा ने रानी की बात सुनकर हंसकर हामी भर दी । अगले दिन रानी ने स्वयं ही तेनालीराम के लिए तरह-तरह के भोजन बनाए। तेनालीराम मध्याह्न भोजन करने के हेतु राज दरबार में आया और राजा कृष्णदेव राय के साथ बैठे हुए भोजन का लुफ्त उठाते हुए , भोजन की प्रशंसा कर रहा था। भोजन समाप्त होने के बाद पान का बीड़ा भी तेनालीराम को दीया।
तेनालीराम भोजन से अत्यंत प्रभावित हो गया था इसीलिए रानी से कहा सचमुच आज तक मैंने ऐसा स्वादिष्ट भोजन कभी नहीं खाया। राजरानी ने मौके का फायदा उठाकर तेनाली रामन से पूछ लिया , तेनाली!! हम बड़े या राजा ? इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए राजा और रानी दोनों ही उत्सुक थे । तेनाली अपने दोनों हाथ जोड़कर जमीन पर गिर पड़ा। यह दृश्य देख रानी बोली “यह क्या कर रहे हो तेनाली”?
तेनालीराम उठ खड़ा हुआ और बोला महारानी मेरे लिए तो आप धरती माता के समान और मेरे महाराज आसमान के भाती!

दोनों में से किसको श्रेष्ठ कहूं एवं बड़ा यह मेरी समझ से बाहर है। वैसे आज रानी के हाथ का स्वादिष्ट भोजन खाने के बाद रानी को ही बड़ा कहना होगा इसीलिए मैं धरती को दंडवत कर रहा था।
तेनालीराम का यह अनोखा उत्तर सुंदर राजा और रानी अपनी हंसी रोक न सके। राजा ने कहा तेनाली तुम सचमुच चतुर हो तुमने मुझे भले ही जीता दिया परंतु तुम हार कर भी जीत गए। इस बात को सुनकर राजा रानी और तेनालीराम तीनों हंस पड़े। एक बार फिर तेनालीराम ने अपनी सूझबूझ से यह कठिन प्रश्न का उत्तर भी दे दिया।
- बोध : सभी समस्या का तोड़ होता ही हैं , सिर्फ नज़रिए की जरूरत हैं।
13 . जनता की अदालत – Tenali Raman stories in hindi
जनता की अदालत : विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय शिकार करने का शौक रखते थे।1 दिन राजा कृष्णदेव राय शिकार करने हेतु जंगल में गए। जंगल में रास्ता भूल जाने के कारण रास्ता भटक गए। उनके साथ आए हुए दरबारी पीछे छूट गए। शाम होने ही वाली थी। उन्होंने अपना घोड़ा एक पेड़ से बांदा और पार्टी में दिखने वाले गांव में बिताने का निर्णय किया। राजा कृष्णदेव राय भेष बदलकर किसान के पास आए और कहा मैं बड़े लंबे सफर से आया हूं क्या मुझे एक रात यहां ठहरने के लिए आज से मिलेगा!!
किसान ने कहा ठीक है मैं एक साधारण व्यक्ति हूं इसलिए मेरे पास एक पुराना कंबल ही है। राजा ने अपना मुंह हिलाकर किसान की बात को सहमति दी। रात को राजा ने पूरे गांव में चक्कर लगा है और पता चला कि गांव में बहुत ही गरीबी है। राजा ने एक आदमी से कहा आप लोग आपकी शिकायत लेकर राजा के पास क्यों नहीं जाते। उस आदमी ने उत्तर देते हुए कहा कोई हमें दरबार तक पहुंचने ही नहीं देता सभी लोग चापलूसो से गिरे रहते हैं।

सुबह राजा अपने दरबार में लौटे और लौटते ही तुरंत ही मंत्री और दूसरे अधिकारियों को बुलाया। कहा , हमें पता चला है कि राज्य के कई गांव में बहुत ही दरिद्रता फैली हुई है । परंतु तुम तो गांव का भला करने के लिए हमारे खजाने से ढेर पैसे और स्वर्ण मुद्राएं ले जाते हो , उसका क्या करते हो ?
मंत्री ने बड़े ही भोलेपन से महाराज से कहा , “महाराज ! सभी धन गरीबों के लिए ही इस्तेमाल होता है। आपको किसी ने गलत जानकारी दी है”।
मंत्री के जाने के बाद राजा ने अपने सेनापति से कह कर तेनालीराम को दरबार में बुलवाया और कल की पूरी घटना सुनाई । महाराज गांव के लोग दरबार में नहीं आएंगे , आपको जो भी फैसला करना है वह आपको गांव के लोगों से बात कर ही करना पड़ेगा।

अगले दिन राजा ने दरबार में घोषित किया कि कल हम भेष बदलकर गांव में जाएंगे और देखेंगे कि हमारी प्रजा किस हाल में अपना जीवन गुजार रही है।मंत्री अपने कुटिल मन से बोला , “महाराज इन सभी प्रजा कुशल मंगल है आप उसकी चिंता ना करें” । तेनालीराम बोला मंत्री के अधिक प्रजा को कोई कौन स्नेह कर सकता है। परंतु महाराज को भी प्रजा का ख्याल रखना आवश्यक है इसलिए महाराज को गांव गांव जाकर प्रजा का हाल देखना चाहिए।
अगले दिन राजा प्रातः काल को ही गांव की ओर प्रस्थान करने लगे , राजा को दूर से देखकर ही प्रजा में खुशी का माहौल छा गया। सभी राजा को अपनी अपनी समस्याएं बताने लगे।
Tenali Raman stories in hindi
मंत्री के सारे कारनामों का भेद खुल गया। मंत्री शर्म के मारे सिर झुकाए खड़ा हुआ था। राजा ने यह घोषणा कर दी कि हर महीने में खुद आकर प्रजा की समस्याओं का समाधान करूंगा।
- बोध : पुर्थ्वी गोल हैं , किया हुआ गलत काम एक न एक दिन तो जरूर बहार आएगा।
14 : कंजूस सेठ – Tenali ramakrishna
कंजूस सेठ : एक बार सेठ के कुछ मित्र ने हंसी मजाक में एक चित्रकार को कंजूस सेठ का चित्र बनाने के लिए कहा और सेट को भी इस बात से सहमत किया। सभी दोस्तों के सामने शर्म के मारे वह मान तो गया परंतु जब चित्रकार उसका चित्र बनाकर ले आया , तभी चित्रकार का मूल्य चुकाने की सेट की इच्छा नहीं हुई। चित्रकार को मूल्य के रूप में 100 स्वर्ण मुद्राएं देनी थी।
कंजूस सेठ एक तरह से कलाकार भी था। सेठ का जो भी चित्र चित्रकार बनाकर लाया था उस चित्र को लेकर सेठ कमरे में गया कुछ ही क्षणों के बाद अपना चेहरा बदलकर सिर से सबके सामने हाजिर हुआ। बाहर आकर ही चित्रकार से कहा , “तुम्हारा बनाया हुआ चित्र जरा भी ठीक नहीं है”। तुम ही बताओ , क्या मेरा चेहरा इस चित्र से जरा भी मिलता है? मैं तुम्हारे इस अधूरे काम का मूल्य कैसे चुका सकता हूं !!!

जब भी तुम मेरा हुबहू चित्र बना कर लाओगे तभी मैं उस चित्र को खरीद लूंगा । दूसरे ही दिन चित्रकार और एक चित्र बना लाया , वह चित्र हुबहू सेठ के चेहरे से मिलता था। इस बार फिर सेठ की कुटिलता ने , अपना चेहरा बदल दिया। और चित्रकार की भूल निकालने लगा। चित्रकार अपने काम से बड़ा ही लज्जित हुआ , इतने बरसों से काम करने के बावजूद भी मेरे चित्र में ऐसी भूल क्यों होती है!!
शाम ढल गई , दूसरे दिन चित्रकार और एक नवीन चित्र बना कर ले आया। चित्रकार को समझ आ चुका था कि यह सब कुछ सेठ का ही किया धरा है। चित्रकार को ज्ञात हो गया था कि कंजूस सेठ को पैसे देने में दिक्कत हो रही थी इसलिए यह सब उसका नाटक था।यह सभी भाग चित्रकार ने जाकर तेनालीराम को विस्तार से सुनाई।

कुछ समय धीरज का से सोचने के बाद तेनाली ने उत्तर देते हुए कहा , “कल उस कंजूस सेठ के पास तुम एक दर्पण लेकर जाना और उसे कहना कि आप की असली तस्वीर लाया हूं अगर आपको यकीन नहीं है तो आप खुद ही मिलाकर देख सकते हैं । कोई भी भूल आपको नजर नहीं आएगी” फिर तुम्हारा काम हो गया समझो । जो भी तेनालीराम ने बताया था वहां चित्रकार ने सेठ को सुना दिया।
- बोध : अधिक कंजूसाई हास्य के पात्र बनती हैं।
15 : महामूर्ख – Tenali ramakrishna
महामूर्ख : विजयनगर के राजा सभी त्योहार बड़ी ही अच्छी तरह से मनाते थे खास की होली । होली के अवसर पर हास्य मनोरंजन आदि कार्यक्रमों की व्यवस्था राजा द्वारा की जाती थी । प्रतियोगिता में जीतने वाले को पुरस्कार से सम्मानित किया जाता था सबसे बड़ा पुरस्कार “महामूर्ख” की उपाधि पाने वाले को दिया जाता था।
तेनालीराम विजय नगर के राजू दरबार में सभी का मनोरंजन करते थे। तेनालीराम बहुत ही बुद्धिमान और प्रामाणिक कितने थे । प्रतिवर्ष हास्य कलाकार का पुरस्कार तेनालीराम के अलावा और किसी को नहीं मिलता था। हास्य कलाकार उपरांत महामूर्ख का किताब भी हर साल तेनाली ही जीतता था । दरबारी तेनाली रामा की इस बात से चलते थे।10 सभी दरबारियों ने मिलकर तेनालीराम को हराने की युक्ति निकाली।
होली के अवसर पर सभी दरबारियों ने मिलकर तेनालीराम को खूब भांग पिला दी। भांग के नशे में तेनालीराम दोपहर तक सोते ही रहे। जभी तेनालीराम की आंखें खुली , तभी दोपहर हो चुकी थी और आधा कार्यक्रम पूरा भी हो चुका था।

तेनालीराम को देखकर राजा ने पूछा , मूर्ख तेनाली आज इस त्यौहार के दिन भी भांग पीकर सो गए थे क्या!!
राजा का तेनाली को मूर्ख कहना मंत्रियों को बड़ा ही अच्छा लगा।सभी मंत्रियों ने भी , राजा की बात में हा से हा मिला कर कहा , “सही बात है महाराज तेनालीराम मूर्ख नहीं परंतु महामूर्ख है”।
जब तेनालीराम ने सभी दरबारी के मुंह से अपने यहां कुछ बातें सुनी तो मुस्कुराते हुए राजा से बोले , “धन्यवाद महाराज , अपने इस दिन का सबसे बड़ा पुरस्कार मुझे दे दिया”।

यह बात सुनकर उपस्थित सभी दरबारियों को अपनी खुद की भूल का एहसास हुआ परंतु अब वह कुछ नहीं कर सकते। क्योंकि खुद अपने ही मुंह से महामूर्ख का किताब तेनालीराम को दे चुके थे। प्रतिवर्ष के रिवाज को जारी रखते हुए इस वर्ष भी महामूर्ख का किताब तेनाली को ही मिला।
- बोध : जो खड़ा खोदता हैं , वो स्वयं उसमे गिरता हैं ।
16 : तेनाली का धोड़ा – Tenali ramakrishna
राजा कृष्णदेव राय का घोड़ा बड़ा ही तगड़ा और दौड़ने में सबसे तेज था।घोड़े के अपने गुण होने के कारण घोड़े की कीमत भी ज्यादा थी। तेनालीराम का घोड़ा मरियल था और तेनालीराम अपना घोड़ा बेचना चाहते थे परंतु उसकी कीमत बहुत ही कम थी , अगर वह चाह कर भी वह अपना घोड़ा नहीं बेच पाते। 1 दिन विजयनगर के राजा कृष्णदेव और तेनालीराम अपने अपने घोड़े पर बैठकर जंगल की ओर टहलने निकले। उसी सफर में राजा घोड़े की मरियल चाल देखी , देख कर ही राजा बोले कैसी मरियल चाल है तुम्हारे घोड़े की मैम मेरे घोड़े के साथ जो खेल कर सकता हूं वह तुम अपने घोड़ों के साथ नहीं कर सकते ।

तेनालीराम ने बड़े ही सबसे महाराज को उत्तर दिया महाराज , जो खेल में अपने इस बड़ी मरियल घोड़े के साथ कर सकता हूं वह आप अपने घोड़े से नहीं दिखा सकते।
शर्त लगाकर दोनों ही तुंगभद्रा नदी की ओर आगे बढ़ने लगे। नदी का प्रवाह भी भयानक था और नदी में कहीं जगह पर भंवर भी दिखाई पडते थे।
Tenali Raman stories in hindi
नदी के करीब पहुंचते ही तेनाली अपने घोड़े से कूद गए और घोड़े को पानी में धक्का दे दिया।

तेनाली ने चुनौती देते हुए राजा से कहा , “आप अपने घोड़े को मेरी तरह पानी में धक्का देकर दिखाइए”। राजा ने तेनालीराम की बात को इनकार करते हुए कहा नहीं , “मैं अपने घोड़े को तुम्हारी तरह पानी में धक्का नहीं मार सकता”।
मैं मान गया कि मेरे कीमती घोड़े से तुम्हारा घोड़ा बेहतर है परंतु तुम्हें यह युक्त सूजी कैसे तेनालीराम? महाराज ने पूछा ।
महाराज मैंने एक किताब में पढ़ा था कि निकम्मे और बेकार मित्र का यही लाभ होता है कि जब वह न रहे तो दुख नहीं होता। तेनाली की बात सुनकर राजा हंस पड़े।
- बोध : कीमती वस्तु की सदैव कदर करनी चाहिए।
17 : संतुष्ट व्यक्ति – Tenali ramakrishna
एक दिन की बात है , तेनाली बड़े ही प्रसन्न मन से राज दरबार में उपस्थित हुआ। तेनाली बड़ा ही सज धज कर अच्छे कपड़ों में और गहनों में राज दरबार आया था। इसे देखकर राजा ने तुरंत ही पूछा , “आज कोई खास बात है क्या!! बहुत ही प्रसन्न लग रहे हो”?तेनाली ने बड़े ही निर्मलता से उत्तर दिया नहीं महाराज कोई खास बात नहीं है ।
राजा ने कहा नहीं कुछ तो बात है , “आज तुम बड़े ही प्रसन्न और अलग लग रहे हो जब भी मैं पहली बार तुमसे मिला था तभी तुम्हारा व्यक्तित्व बिल्कुल साधारण था”।तेनालीराम बोला , ‘इस पृथ्वी का नियम है महाराज हर एक व्यक्ति समय के अधीन बदलता रहता है’। मैंने आपके द्वारा दिए गए धन और उपहारों की काफी बचत कर ली है । राजा बोले , “अगर यह बात है तो फिर तुम्हें अपनी बचत का कुछ हिस्सा दूसरों को भी देना चाहिए”।

तेनाली बोला , “दूसरों की मदद कर सकूं इतना पर्याप्त धन मेरे पास नहीं है”।तेनालीराम के मुह से यह शंकर महाराज को तेनालीराम की बात का बुरा लगा ।तेनालीराम ने क्षमा मांगते हुए महाराज से पूछा बताइए महाराज मुझे क्या दान करना चाहिए !! राजा ने कहा तुम एक भव्य घर बनवाओ और उस नए घर को दान कर दो ।
राजा की आज्ञा का पालन करते हुए अगले ही दिन तेनालीराम ने नया घर बनवाने की तैयारी शुरू कर दी जब भव्य मकान तैयार हो गया तभी मकान के ऊपर एक तख्ती टांग दी , यह घर उस व्यक्ति को दिया जाएगा जो व्यक्ति अपने जीवन में सदैव प्रसन्न साथ रह रहा हो।
इस सूचना को विजय नगर के सभी लोगों ने पढ़ा , परंतु सभी के जीवन में कुछ न कुछ प्रश्न थे। थोड़े दिन बीतने के बाद एक दरिद्र व्यक्ति को इस घटना के बारे में पता चला।
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उसने सोचा कि मैं मकान प्राप्त करने का प्रयास करूंगा । बहुत दरिद्र व्यक्ति स्पीड है तेनालीराम के घर पहुंचा और तेनाली बोला , श्रीमान मैंने आप अपने लगाई हुई सूचना को पढ़ा । मैं यहां दावा करता हूं कि मैं सबसे अधिक प्रसन्न एवं संतुष्ट हूं । अतः मैं उस मकान का असली हकदार हूं।

तेनालीराम ने हंसकर उत्तर दिया कि , “यदि तुम इस घर के बिना ही संतुष्ट हो फिर इस मकान की तो मैं क्या आवश्यकता है”? यदि तुम मकान का दावा कर रहे हो तो फिर तुम संतुष्ट नहीं हो। अगर पूरी तरह से प्रसन्न होते तो, यह तुच्छ मकान का तुझ से क्या लेना देना।
उस निर्धन व्यक्ति को अपने द्वारा की गई भूल का एहसास हो गया । इस मकान का कोई धनी ना हुआ। यह सभी बात तेनालीराम ने राजा कृष्णदेव राय को सुनाई।
राजा बोले , “फिर एक बार तुमने अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय दीया परंतु इस मकान का क्या होगा”। तेनालीराम ने उत्तर देते हुए कहा , कोई शुभ दिन चुनकर गुरु प्रवेश करूंगा। फिर एक बार राजा कृष्णदेव राय की चुनौती स्वीकार कर उस चुनौती में खरा उतरा।
- बोध : लालच बुरी बाला हैं।
18 : उत्सव – Tenali ramakrishna
नया वर्ष करीब होने के कारण विजयनगर में नए वर्ष की तैयारी जोरों शोरों से चल रही थी। विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय चाहते थे कि इस बार नूतन वर्ष के दिन जनता एवं प्रजा में में भेंट देना चाहता हूं। तो तथा में उपस्थित दरबारी और मंत्रियों को मेरा निवेदन है कि मुझे सौगात में क्या देना चाहिए उसके लिए अपना अपना मार्गदर्शन दें।महाराज की बात सुनकर सभी दरबारी अपनी-अपनी तरह से सोचने लगे। मंत्री जी ने सोच कर बताया , “महाराज! मेरा यह निवेदन है कि अलग-अलग देश से लाइट की मंडी संगीतकार और विभिन्न कलाकारों को बुलवाकर एक शानदार कार्यक्रम की रचना की जाए ।

इससे बढ़कर प्रजा के लिए नए वर्ष का इनाम क्या हो सकता है”!! राजा को भी मंत्री जी का यह विचार पसंद आया। मंत्री जी से पूछा , “हमें यह उत्सव करने के लिए कितनी स्वर्ण मुद्राएं की आवश्यकता होगी?” मंत्री जी ने बताया 10 20 लाख स्वर्ण मुद्राएं । राजा ने नवीनता से पूछा, “इतना खर्चा कैसे”? मंत्री जी ने उत्तर देते हुए कहा , देश देश विदेश से सभी कलाकार हमारे राज्य में आएंगे , हमारे राज्य की आम जनता इस सब का खाने-पीने का खर्च और पुरानी रंगशाला ओं की मरम्मत भी तो करनी होगी इतना ही नहीं परंतु शहर भर में रोशनी और सजावट के विभिन्न रंगों को मिलाकर हमारे विजयनगर को सजाया भी जाएगा ।
मंत्री जी का यह उत्तर सुनकर बाकी के दरबारियों ने भी मंत्री जी की बात से सहमति मिलाई। राजा कृष्णदेव राय तो इतने खर्चे की बात सुनकर सोच में पड़ गए। उन्होंने तेनालीराम से कहा तुम बताओ हम इस विषय पर क्या करना चाहिए !! तेनाली बोला , “महाराज उत्सव की बात तो बहुत अच्छी है परंतु यह उत्सव राजधानी में नहीं होना चाहिए”। राजा ने और सभी दरबारी ने पूछा , “ऐसा क्यों”!!

महाराज अगर उत्सव हमारी राजधानी में हुआ तो बाकी की जनता को इसका लाभ नहीं मिल पाएगा। विजय नगर वासी ही इस उत्सव का लाभ ले पाएंगे। इससे अच्छा यही होगा कि कलाकार राज्य के प्रत्येक गांव में जाकर मनोरंजन करें। इसके माध्यम से आम लोग इतिहास और संस्कृति भी जानेंगे।राजा ने तेनाली की बात स्वीकार करते हुए घोषित किया कि तेनाली के कहने मुताबिक ही कार्यक्रम होगा। साथ ही राजा ने कहा , “इसके लिए अधिकतम चाहिए तो खजाने से ले सकते हो”
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देनाली बोला , “धन… मगर किस लिए!” यह उत्सव में तो प्रजा स्वयं खर्च करेगी और इस उत्सव का नाम होगा “मिलन मेला”।इस उत्सव में कलाकार जिस गांव में भी जाएंगे उस गांव के लोग खाने-पीने का प्रबंध कर देंगे। बहुत ही कम खर्च में यह “मिलन मेला” होगा।
राजा ने इस उत्सव का सभी कार्यभार तेनाली को सौंप दिया और भारती मंत्री और उसके साथी के चेहरे उतर गए।
- बोध : अपने स्वार्थ के बहकावे में आकर , दुसरो की खुशी चीन लेनी नहीं चाहिए।
19 . रंग-बिरंगे नाख़ून – Tenali ramakrishna
राजा कृष्णदेव राय अशोक प्रेमी थे एवं पशुओं से बहुत लगाव था यह बात सभी लोग जानते थे। एक दिन वहेलिया राज दरबार में हाजिर हुआ। उसके पास एक रंगीन , सुंदर पक्षी था जो कि पिंजरे में कैद था। वह महाराज से बोला , “मनमोहक पक्षी को मैंने जंगल से पकड़ा है। इसका कंठ बहुत ही मीठा है यह तोते की भाति बोल ही सकता है , मोर की तरह नाच भी सकता है । इस पक्षी को आपसे बेचने हेतु आया हूं”। राजा ने वह पक्षी को इत्मीनान से देखा , राजा को भी यह पक्षी बहुत ही पसंद आया।

राजा ने खरीदने का सोच लिया और इसका मूल्य वहेलिया को पूछा। राजा ने पक्षी का मूल्य 50 मुद्राए बताई। यदि और यह पंछी को अपने राज्य की शोभा बढ़ाने के लिए राज्य के बगीचे में रखने का आदेश दिया। तेनाली अपनी जगह से उठकर बोला , “मुझे यकीन नहीं आ रहा कि यह पक्षी बरसात में नृत्य कर सकता है एवं मुझे तो यह लगता है कि , यह पंछी को कितने दिनों से नहलाया भी नहीं गया”।
तेनाली की सारी बात सुनकर वहेलिया परेशान हो गया और महाराज को गदगद कंठ से कहा , “महाराज! मैं एक आम आदमी हूं । पंछियों को पकड़ कर भेजना भी मेरा काम है। मैं अच्छी तरह से समझता हूं कि किन पंछी मैं कौन से गुण है। इसीलिए मेरे पंछी पर किसी भी प्रमाण के बिना आरोप लगाना उचित नहीं है”। यदि में निर्धन हूं इसका अर्थ यह नहीं कि तेनालीराम मुझे जूठा कह सकता है।
Tenali Raman stories in hindi
बहेलिया बात सुनकर महाराज जी ने तेनाली से कहा , “तेनाली यह सब तुम्हें शोभा नहीं देता”। महाराज ने बहेलिया को कहा , क्या तुम अपनी बात सिद्ध कर सकते हो। बहेलिया ने उत्तर दिया जी महाराज!! तेनालीराम ने एक गिलास पानी उसी के पिंजरे पर डाल दिया। पंछी पूरा भीग गया । सभी दरबारी और मंत्री दंग रह गए। पानी के स्पर्श से पंछी का रंग उतर गया और भूरा हो गया।
- बोध : किसी के साथ छल करना नहीं करना चाहिए , उसका मूल्य हमे चुकाना ही पड़ता हैं।
20 : तेनालीराम की बुद्धि – Tenali ramakrishna
एक दिन जब राजा कृष्णदेव राय का दरबार भरा था। तभी एक व्यापारी दरबार में आया। उसके साथ दोहे का बड़ा संदूक था। उसने महाराज से कहा , “महाराज! मैं आप से मदद मांगने आया हूं, मैं एक व्यापारी हूं। मैंने उत्तर भारत में तीर्थ यात्रा पर जाने की योजना बनाई है। मेरे पूर्वजों का सारा धन इस संदूक में है। मैं निवेदन करता हूं कि आप इस संदूक को अपने पास रखें। राजा ने कहा , “ठीक है मैं रखूंगा , सिपाही को आदेश दिया कि उस बक्से को लेकर मेरे पास आओ”।

महाराज ने अच्छे से संदूक को देखा और कहा , ठीक है तुम्हारी संपत्ति की देखभाल में करूंगा। तुम्हारी यात्रा शुभ और मंगलमय हो। उत्तम दुख को राज खजाने में रखा गया। तभी विजयनगर का मंत्री बोला , “महाराज! कानून कहता है कि , राज खजाने में केवल राज भंडार रखा जा सकता है”। इसलिए आप किस संदूक को तेनालीराम को सौंप दें। तेनाली इस संदूक को अपने घर पर भी सुरक्षित रख सकता है । महाराज ने तेनाली से पूछा , “क्या तुम संदूक लेने की जिम्मेदारी को उठाते हो”!! तेनाली ने राजा की बात का स्वीकार किया।
राज्यसभा खत्म होने के बाद तेनाली अपने घर पहुंचा। और उसे सलामत जगह पर रख दिया। कुछ महीने के बाद वह ब्यापारी फिर से राजदरबार पहुंचा। उसने महाराष्ट्र कहा , “महाराज में तीर्थ यात्रा कर वापस आ गया हूं , मैं यहां अपना बक्सा वापस लेने के लिए आया हूं”। राजा ने बक्सा लौटाने के लिए तेनाली को आज्ञा दी। तेनालीराम बक्सा लेने हेतु घर गए। घर पहुंच कर उन्होंने लोहे का बक्सा उठाया उन्हें आश्चर्य हुआ , बक्से का वजन पहले से बहुत कम हो गया था। अब तेनाली जान गए कि , व्यापारी राजा को धोखा देने आया था। तेनाली ने कुछ समय बक्से कोको बड़े ध्यान से और फिर वह राजा के दरबार में गए।

तेनाली ने राजदरबार जाकर महाराज से कहा , इस व्यापारी के पूर्वज मेरे घर आए हैं और मुझे वह बक्सा लेने से रोक रहे हैं। यह सुनकर वह व्यापारी बोला , “ए ढोंगी चालाकी मत कर। राजा से कहा महाराज तेनाली झूठ बोल रहा है और मेरा धन हथियाना चाहता है”। दूसरे मंत्रियों ने भी उस व्यापारी का साथ दिया। राजा ने तेनाली से कहा , “अभी हम सब तुम्हारे घर चलेंगे यदि तुम झूठे साबित हुए तो तुम्हें कड़ी से कड़ी सजा दी जाएगी”। राजा दरबारी और व्यापारी तेनाली के घर पहुंचे।
राजा ने तेनाली को बक्सा खोलने के लिए आदेश दिया। बक्सा खोलने पर पता चला कि बक्सा पूरा शक्कर से भरा था। महाराज ने उस ढोंगी व्यापारी को बंदी बनाने का आदेश दिया। अपने पर मुसीबत आने की वजह से व्यापारी सच बोल पड़ा कि , “मुझे यह कार्य करने के लिए दो मंत्रियों ने कहा था उन दोनों का मंसूबा था कि तेनाली को सजा मिले”।
राजा ने उन दो मंत्रियों को भी बंदी बना लिया। राजा ने तेनालीराम से प्रश्न पूछा कि , तुम्हें कैसे पता चला कि उस बक्से में स्वर्ण मुद्राएं नहीं है परंतु शक्कर है !! तेनालीराम ने उत्तर देते हुए कहा , उस संदूक के आसपास हमेशा चीटियां मंडराती हुई रहती थी । जैसे ही चीटियों ने शक्कर खाना शुरू किया , कुछ ही दिनों में बक्से का वजन कम हो गया। महाराज ने तेनालीराम के इस कार्य से खुश होकर मोतियों की माला भेंट दी।
- बोध : दुसरो को घोखा देना बहुत बुरी बात हैं।
21 : स्वपन महल – Tenali ramakrishna
एक रात सपने में राजा कृष्णदेव राय ने बहुत ही सुंदर , अद्भुत महल देखा। महल की काफी सारे विशेषताएं थी जिसमें कमरे विभिन्न रंगीन पत्थर से बने हुए थे। महल मैं उजाला ही इतना था कि रोशनी और दीपक की कोई आवश्यकता नहीं थी। उस महल में सुख की कोई कमी महसूस ना हो इस तरह के सामान भी थे। धरती से महल तक पहुंचने के लिए बस एक इच्छा ही पूर्ति थी।आंखें बंद करते ही महल के अंदर और आंख खोलते ही महल के बाहर। राजा कृष्णदेव राय को सपने में दिखाई देना महल बहुत ही पसंद आ गया था इसलिए दूसरे दिन सुबह राज दरबार में घोषित करते हुए कहा कि जो भी हमें इस तरह का महा महल बना बनवा कर देगा उसे हम एक लाख स्वर्ण मुद्राएं पुरस्कार के रुप में देंगे।

सारे राज्य में राजा ने की गई घोषणा की चर्चा होने लगी। विजयनगर के वासी यह सोचते थे कि , “कभी सपने में लिखा हुआ महल सच में बनवाया जा सकता है पता नहीं राजा को क्या हो गया है”। राजा ने अपने राज दरबार में सभी कारीगरों को इकट्ठा किया। और सब कारीगरों को अलग-अलग काम सौंप दिया गया।कई कुशल कारीगरों ने राजा को काफी समझाने का प्रयास किया कि यह कल्पना महल वास्तव में बनाने के लिए योग्य नहीं है। इस तरह का स्वप्न महल बनवाना हमारे बस की बात नहीं। परंतु राजा कृष्णदेव राय के सिर पर महल बनवाने का भूत सवार था।
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कुछ लोगों ने इस बात का काफी लाभ उठाया और राजा को , महल का वादा करके काफी धन लूटा। सभी राजदरबारी एवं मंत्री काफी ज्यादा परेशान थे क्योंकि राजा को अब समझाना शायद नामुमकिन था।सभी मंत्री को यह डर था कि यदि हम राजा के मुंह पर ही कहेंगे कि यह महल बनवाना चक्के नहीं है तो फिर राजा बहुत ही क्रोधित हो जाएंगे। मंत्रियों ने आपस में एक दूसरे की मनसा जानने का प्रयास किया। सभी मंत्रियों और दरबारी ने अंतः तेनालीराम से बात करने का निर्णय लिया। परंतु तेनालीराम कुछ दिनों की छुट्टी लेकर बाहर गांव चला गया था। दूसरे दिन एक भी वृद्ध व्यक्ति रोटा और चिल्लाता हुआ राज दरबार में आ पहुंचा। राजा ने उससे पूछा , “तुम शांति से अपना दुख हमें बता सकते हो! , हम तुम्हारी सहायता अवश्य करेंगे”।

राजा कृष्णदेव राय न्याय प्रेमी राजा थे। बूढ़े व्यक्ति ने अपनी समस्या बताते हुए कहा , “मैं लुट गया हूं महाराज मेरे जीवन की सारी कमाई किसी ने हड़प ली है । मेरे घर पर मेरे बीवी बच्चे भी है। अब मैं उसका पेट कैसे भरूं!” राजा ने क्रोधित होकर कहा , “क्या तुम्हारे पर किसी कर्मचारी ने अत्याचार किया है हमें उसका नाम बताइए”। नहीं महाराज आपके किसी कर्मचारी ने मुझे नुकसान नहीं पहुंचाया। तो तो फिर यह बात में कुछ न कुछ गड़बड़ है। सीधी तरह से हमें बताओ। बूढ़े व्यक्ति ने कहा , “महाराज अगर मैं अभय दान पाऊं तो ही मैं आपको बात बताऊंगा। राजा ने उस बूढ़े व्यक्ति को अभयदान दिया”।
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बूढ़ा व्यक्ति बोला , महाराज आप गई रात को मेरे सपनों में आए थे और आपने अपने मंत्रियों को आदेश देकर मेरे घर से मेरा स्वर्ण मुद्राएं भरा संदूक उठवा कर अपने राज दरबार में रखवा दिया। उस संदूक में मेरी कमाई हुई सारी रकम थी।
राजा उस व्यक्ति पर बड़े ही क्रोधित हुए और कहा , “बहुत मूर्ख हो तुम सपने भी कभी सच होते हैं”!!
बूढ़ा व्यक्ति बोला , सही कहा महाराज स्वप्न चोरी का हो या महल का सपना कभी सच नहीं होता।
राजा के मन में कई प्रश्न है , सभी प्रश्नों के साथ राजा उस बूढ़े व्यक्ति की ओर देखते रहे। उस बूढ़े व्यक्ति ने नकली लगाई हुई दाढ़ी निकाली और डैडी निकलते ही बूढ़े के स्थान पर तेनालीराम था। चाचा कुछ तेनालीराम को कहा उससे पहले ही तेनालीराम ने कहा महाराज आप मुझे पहले ही अभयदान दे चुके हैं। महाराज हंसने लगे। एक बार फिर से नाली ने अपनी सूझबूझ से राजा को सीख दी।
- बोध : वास्तविकता और स्वप्न में भेद परखना चाहिए।
22 : जादुई कुए – Tenali ramakrishna
एक बार राजा कृष्णदेव राय ने विजयनगर के गुरु मंत्री को राज्य में एक से अधिक हुए बनवाने का आदेश दिया। गर्मियां की सीजन पास आ रही थी इसलिए राजा कृष्णदेव राय चाहते थे कि शीघ्र अति शीघ्र कार्य संपन्न हो और प्रजाजन को इसका लाभ मिल सके। गुरु मंत्री ने राजा ने जो कार्य सौंपा था , उस कार्य हेतु शाही खजाने से कहीं सारा धन लिया। राजा की आज्ञा के आधीन कई सारे कुवे नगर में तैयार हो गए। इसके बाद कई दिन बीत गए 1 दिन राजा का मन नगर में भ्रमण करने को हुआ और राजा को लगा की शादी में सभी कुए को भी देख लूंगा। और अपना आदेश पूरा होते देख मैं मन से भी प्रसन्न हो जाऊंगा।

गर्मियों के दिन कुछ गांव वाले तेनालीराम के पास पहुंचे , सभी गांव वाले कुरुख मंत्री की शिकायत करने हेतु तेनाली के पास आए थे। सभी बारी बारी गृह मंत्री की शिकायत तेनालीराम से करने लगे। सभी की शिकायत है तेनाली ने बड़ी ही थी रिश्ता के साथ सोनी और न्याय प्राप्त करने का मार्ग भी दिखाया। अगले दिन तेनाली राजा कृष्णदेव राय को गुप्त ही मिला। तेनाली ने राजा से कहा , “महाराज! विजय नगर में कुछ चोर होने की सूचना मिली है वह सभी चोरों ने हमारे कुए चुरा लिए हैं।
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राजा ने उत्तर देते हुए कहा , “क्या कह रहे हो तेनाली! कोई चोर कुआं कैसे चुरा सकता है”। महाराज यह बात अजीब जरूर है परंतु यह कड़वा सच है। तेनाली ने बड़े भोलेपन से कहा , “उन चोरों ने अभी तक 1 से अधिक हुए चुरा लिए हैं”। अगले दिन यह बात राज दरबार में हुई। सभी तेनाली कि यह मूर्खता भरी बात सुनकर हंसने लगे। मंत्री जी ने कहा , तेनाली तुम्हारी तबीयत तो ठीक है! क्यों अजीब और करीब बातें कर रहे हो। तेनाली ने सब से कहा , “मैं जानता था कि मेरी बात का कोई भी विश्वास नहीं करेगा”। इसीलिए मैं आप सब को विश्वास दिलाने के लिए गांव वालों को साथ लाया हूं। वहां सब राज दरबार के बाहर ही खड़े हैं यदि आपको उसे बुलाकर पूछना है तो पूछ सकते हैं। सभी गांव वाले इस बात को विस्तार पूर्वक जानते हैं।

राजा ने गांव वाले को अंदर बुलाने का आदेश दिया। एक गांव वाला बोला , गुरु मंत्री द्वारा बनाए हुए सभी को नष्ट हो गए हैं। राजा ने उस आदमी की बात का मान रखते हुए कुछ दरबारियों को इस बात का निरीक्षण करने के लिए भेजा।
मंत्री जी और सभी लोग पूरे नगर का निरीक्षण करके राज दरबार में वापस लौटे और महाराज से कहा महाराज आसपास के थानों में तथा हमारे विजयनगर में एक भी कुआं नहीं है। राजा को यह बात पता चलते ही गृहमंत्री डर गया। वास्तव में गुरु मंत्री ने मजदूरों को कुछ ही कुए बनवाने का आदेश दिया था।बची हुई स्वर्ण मुद्राएं और धन गुरु मंत्री ने अपने स्वार्थ के लिए उपयोग किया था। राजा कृष्णदेव राय तेनाली की बात का भेद जान चुके थे। राजा गुरु मंत्री को कुछ कहें इससे पहले तेनाली बोला , “महाराज! इसमें किसी की भी गलती नहीं है । असल में वे सभी जादुई कुवे थे जो बनने के बाद कुछ ही दिनों में नष्ट हो गए”।
गुरु मंत्री तेनाली की इस बात को सुनकर अचंभित रह गया , राजा ने गुरु मंत्री को काफी सुनाया और कुआं खोदने का कार्य तेनाली को सौंपा गया।
- बोध : कुनीति से कमाया धन ज्यादा टिकता नहीं हैं।
23 : तेनाली का पुत्र – Tenali ramakrishna
विजयनगर के महल में एक बड़ा सा उद्यान था। इस उद्यान में कई तरह के अति सुंदर फूल लगाए हुए थे। एक बार एक विदेशी बिजयनगर की यात्रा करने हेतु आया था , उस विदेशी ने एक पौधा कृष्णदेव राय को सौगात के रूप दिया जिस पर गुलाब लगे हुए थे। राजा को यह पौधा बगीचे के अपने पौधों से अधिक प्रिय हो गया। राजा हर रोज बगीचे की शेर करते थे। एक दिन राजा ने निरीक्षण किया तो पता चला कि गुलाब के पौधों में गुलाब की संख्या कम होती जा रही है।
राजा को लगा कि अवश्य ही कोई गुलाब चोरी छुपे ले जा रहा है। इसीलिए बगीचे की सुरक्षा बढ़ाते हुए सेनापति तैनाद किए गए और राजा ने उस चोर को पकड़ने का आदेश दिया। सैनी कौन है अगले दिन जोर को गुलाब की चोरी करते हुए पकड़ लिया। चोर तेनालीराम का पुत्र था। विजयनगर का नियम था कि जो भी चोर पकड़ा जाए उसे नगर की सड़कों पर घुमाया जाता था। तेनालीराम का पुत्र गुलाब चुराने के जुर्म में पकड़ा गया था। जब भी सजा अपनी सजा काटते हुए तेनाली के घर के पास पहुंचा तो तेनाली की पत्नी बोली ,”क्या आप अपने पुत्र को इस हालत में देख सकते हैं” ?? तेनाली ने अपने पुत्र तक आवाज पहुंच सके इस कदर बोला , ‘मैं क्या कर सकता हूं यदि बा अपनी तीखी जुबान का उपयोग करें तो हो सकता है’। तेनालीराम के पुत्र ने यह बात सुनी परंतु उसे कुछ समझ नहीं आया। पिताजी के इस भारत का अर्थ क्या हो सकता है इस बात पर वह सोचने लगा। “तीखी जुबान का प्रयोग इसका मतलब क्या हो सकता है”!!

यदि मैं इस वाक्य का अर्थ समझ लो तो मैं सजा से बच सकता हूं। थोड़ी देर विचारने पर उसको अर्थ समझ में आ गया कि , गुलाबो को किसी को देखने से पहले स्वयं उसे खा ले। धीरे-धीरे तेनालीराम के पुत्र ने गुलाब खाना शुरु कर दिया महल पहुंचते हुए वह सारे गुलाब खा गया इसकी भनक सिपाहियों तक ना पहुंची।
दरबार पहुंचकर सिपाहियों ने तेनालीराम के पुत्र पर आरोप लगाते हुए कहा कि आपका गुनहगार प्रस्तुत है महाराज इस लड़के ने हमारे बगीचे से गुलाब के फूल चुराए थे , सैनिकों ने इसे रंगे हाथ पकड़ा है।
राजा ने आश्चर्य से पूछा , “यह छोटा बालक चोर!!”
तेनाली के पुत्र ने अपने कोमल मन से उत्तर दिया , “महाराज! मैं तो बगीचे की नजदीक से गुजर रहा था आप को प्रसन्न करने हेतु मुझे पकड़ कर यहां लाया गया है। मैंने कोई गुलाब नहीं चुराया। यदि मेरा कोई दोस्त है और मैंने गुलाब चुराए हैं तो मेरे पास होने भी तो चाहिए!!” इतना कहकर चुप हो गया।सैनिकों ने उस लड़के की जांच की परंतु कुछ ना मिल पाया यह देखकर सैनिक अचंभित रह गए।
महाराजा उन सिपाहियों पर क्रोधित होकर बोले , “तुम एक साधारण से बालक को चोर कैसे बना सकते हो!!”बच्चे को चोर साबित करने के लिए तुम्हारे पास सबूत भी तो नहीं है। जाओ भविष्य में बिना सबूत के किसी पर अपराधी होने का आरोप मत लगा देना। इस प्रकार तेनाली का पुत्र तेनाली की बुद्धिमत्ता से स्वतंत्र हो गया।
- बोध : हमेशा अपनी भूल स्वीकार करनी चाहिए।
24 : जाड़े की मिठाई – Tenali raman stories in hindi
एक बार राज महल में राजा कृष्णदेव राय के साथ बिजली राम और पुरोहित बैठे थे। जाडे के दिन चल रहे थे। सुबह की धूप सेकते हुए तीनों मैच जीतने व्यस्त थे, तभी एकाएक राजा ने कहा जाने का मौसम सबसे अच्छा मौसम होता है। खूब खाओ सेहत और शक्ति से भरपूर रहो, और अपनी सेहत अच्छी बनाओ। मिठाई खाने का अपना ही मजा है । अपना ही आनंद है।

राजा कृष्णदेव राय ने बोला अच्छा बताओ जाड़े की सबसे अच्छी और स्वादिष्ट मिठाई कौन सी है? पुरोहित ने उत्तर देते हुए कहा मालपुए रिश्ते की बर्फी और हलवा आदि मिठाई स्वादिष्ट है। राजा कृष्णदेव राय ने सभी मिठाईयां बाजार में से मंगवाई और पुरोहित से कहा जरा कर बताइए इनमें से सबसे अच्छी कौन सी है ? पुरोहितों को सभी मिठाईयां अच्छी लगती थी किस मिठाई को सबसे अच्छा बताता ? तेनालीराम ने कहा अच्छी है मगर एक मिठाई है जो यहां नहीं मिलेगी।
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राजा कृष्णदेव राय ने अधूरे होकर पूछा वहां कौन सी मिठाई है और उस मिठाई का नाम क्या है? नाम पूछ कर क्या करेंगे महाराज आप आज रात को मेरे साथ चले तो मैं वहां मिठाई खिलवा भी दूंगा। राजा कृष्णदेव राय मान गए।रात को सभी लोग साधारण वेश में वह पूरे होते हो और तेनालीराम के साथ चल पड़े।चलते चलते तीनों काफी दूर निकल गए एक जगह दो तीन आदमी अलाव के सामने शांति से बैठे हैं बातों में खोए हुए। यह तीनों पी वहां रुक गए। इस मैच में लोग राजा को पहचान भी ना पाए।

पांचवी कोल्हू चल रहा था।गुड नेचर में पुरोहितों और राजा के पास गए। अंधेरे में राजा और पुरोहितों को थोड़ा-थोड़ा गर्म गुर्दे कर बोले लीजिए खाइए जाड़े की असली मिठाई।’राजा ने गरमा गरम गुड़ खाया तो बड़ा स्वादिष्ट लगा और आनंद हुआ। राजा बोले वाह इतनी बढ़िया मिठाई यहां अंधेरे में कहां से आई? तभी तेनालीराम को एक कोने में पड़ी पतिया दिखाई दी।
वहां अपनी जगह से उठा और कुछ पत्तियां इकट्ठे कर आग लगा दी। फिर बोला महाराज यहां गुड है।”गुड और इतनी स्वादिष्ट! महाराज यह गुड है।”गुड और इतनी स्वादिष्ट!”महाराज झाड़ों में असली मजा गरमा गरम चीजों मैं ही रहता है। यहां गुड गर्म है इसलिए स्वादिष्ट है।’यह सुनकर राजा कृष्णदेव राय मुस्करा दिए। पुरोहित बोले वाह यहां तो जाड़े की सबसे अच्छी मिठाई है ऐसी मिठाई हमने पूरी जिंदगी में कभी नहीं खाई।
- बोध : अपने खातिर दुसरो को परेशानी हो ऐसे स्वार्थ के कार्य नहीं करने चहिये।
25 : सोने का आम – Tenali raman stories in hindi
समय के साथ-साथ राजा कृष्णदेव राय की माता बहुत वॄद्ध हो गई थीं। एक बार वे बहुत बीमार पड़ गई। उन्हें लगा कि अब वे शीघ्र ही मर जाएंगी। उन्हें आम बहुत पसंद थे इसलिए जीवन के अंतिम दिनों में वे आम दान करना चाहती थीं, सो उन्होंने राजा से ब्राह्मणों को आमों को दान करने की इच्छा प्रकट की।वे समझती थीं कि इस प्रकार दान करने से उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होगी, सो कुछ दिनों बाद राजा की माता अपनी अंतिम इच्छा की पूर्ति किए बिना ही मॄत्यु को प्राप्त हो गईं।
उनकी मॄत्यु के बाद राजा ने सभी विद्वान ब्राह्मणों को बुलाया और अपनी मां की अंतिम अपूर्ण इच्छा के बारे में बताया।कुछ देर तक चुप रहने के पश्चात ब्राह्मण बोले, ‘यह तो बहुत ही बुरा हुआ महाराज, अंतिम इच्छा के पूरा न होने की दशा में तो उन्हें मुक्ति ही नहीं मिल सकती।
वे प्रेत योनि में भटकती रहेंगी। महाराज आपको उनकी आत्मा की शांति का उपाय करना चाहिए।’तब महाराज ने उनसे अपनी माता की अंतिम इच्छा की पूर्ति का उपाय पूछा। ब्राह्मण बोले, ‘उनकी आत्मा की शांति के लिए आपको उनकी पुण्यतिथि पर सोने के आमों का दान करना पडेगा।’ अतः राजा ने मां की पुण्यतिथि पर कुछ ब्राह्मणों को भोजन के लिए बुलाया और प्रत्येक को सोने से बने आम दान में दिए।जब तेनालीराम को यह पता चला, तो वह तुरंत समझ गया कि ब्राह्मण लोग राजा की सरलता तथा भोलेपन का लाभ उठा रहे हैं, सो उसने उन ब्राह्मणों को पाठ पढ़ाने की एक योजना बनाई।अगले दिन तेनालीराम ने ब्राह्मणों को निमंत्रण-पत्र भेजा।
उसमें लिखा था कि तेनालीराम भी अपनी माता की पुण्यतिथि पर दान करना चाहता है, क्योंकि वे भी अपनी एक अधूरी इच्छा लेकर मरी थीं।जबसे उसे पता चला है कि उसकी मां की अंतिम इच्छा पूरी न होने के कारण प्रेत-योनि में भटक रही होंगी। वह बहुत ही दुखी है और चाहता है कि जल्दी उसकी मां की आत्मा को शांति मिले। ब्राह्मणों ने सोचा कि तेनालीराम के घर से भी बहुत अधिक दान मिलेगा, क्योंकि वह शाही विदूषक है।सभी ब्राह्मण निश्चित दिन तेनालीराम के घर पहुंच गए।

ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन परोसा गया। भोजन करने के पश्चात सभी दान मिलने की प्रतीक्षा करने लगे। तभी उन्होंने देखा कि तेनालीराम लोहे के सलाखों को आग में गर्म कर रहा है।पूछने पर तेनालीराम बोला, ‘मेरी मां फोड़ों के दर्द से परेशान थीं। मृत्यु के समय उन्हें बहुत तेज दर्द हो रहा था। इससे पहले कि मैं गर्म सलाखों से उनकी सिंकाई करता, वह मर चुकी थी।’
अब उनकी आत्मा की शांति के लिए मुझे आपके साथ वैसा ही करना पड़ेगा, जैसी कि उनकी अंतिम इच्छा थी।’यह सुनकर ब्राह्मण बौखला गए। वे वहां से तुरंत चले जाना चाहते थे।
वे गुस्से में तेनालीराम से बोले कि हमें गर्म सलाखों से दागने पर तुम्हारी मां की आत्मा को शांति मिलेगी?’नहीं महाशय, मैं झूठ नहीं बोल रहा। यदि सोने के आम दान में देने से महाराज की मां की आत्मा को स्वर्ग में शांति मिल सकती है तो मैं अपनी मां की अंतिम इच्छा क्यों नहीं पूरी कर सकता?’यह सुनते ही सभी ब्राह्मण समझ गए कि तेनालीराम क्या कहना चाहता है।
वे बोले, ‘तेनालीराम, हमें क्षमा करो। हम वे सोने के आम तुम्हें दे देते हैं। बस तुम हमें जाने दो।’तेनालीराम ने सोने के आम लेकर ब्राह्मणों को जाने दिया, परंतु एक लालची ब्राह्मण ने सारी बात राजा को जाकर बता दी। यह सुनकर राजा क्रोधित हो गए और उन्होंने तेनालीराम को बुलाया।वे बोले, ‘तेनालीराम यदि तुम्हें सोने के आम चाहिए थे, तो मुझसे मांग लेते। तुम इतने लालची कैसे हो गए कि तुमने ब्राह्मणों से सोने के आम ले लिए?’महाराज, मैं लालची नहीं हूं, अपितु मैं तो उनकी लालच की प्रवृत्ति को रोक रहा था।
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यदि वे आपकी मां की पुण्यतिथि पर सोने के आम ग्रहण कर सकते हैं, तो मेरी मां की पुण्यतिथि पर लोहे की गर्म सलाखें क्यों नहीं झेल सकते?’राजा तेनालीराम की बातों का अर्थ समझ गए। उन्होंने ब्राह्मणों को बुलाया और उन्हें भविष्य में लालच त्यागने को कहा।
26 : तपस्या का सच – Tenali raman stories in hindi
ठंडी का मौसम होने के कारन , विजयनगर राज्य में बहुत ही ठंड पड़ रही थी। राजा कृष्णदेवराय के दरबार में भी भारी ठंड की चर्चा हुई। पुरोहित ने महाराज को सुझाया, महाराज, यदि इन दिनों यज्ञ किया जाए तो उसका फल उत्तम होगा। दूर-दूर तक उठता यज्ञ का धुआं सारे वातावरण को स्वच्छ और पवित्र कर देगा।दरबारियों ने एक स्वर में कहा, बहुत उत्तम सुझाव है पुरोहितजी का। महाराज को यह सुझाव अवश्य पसंद आया होगा।
महाराज कृष्णदेव राय ने कहा-ठीक है। आप आवश्यकता के अनुसार हमारे कोष से धन प्राप्त कर सकते हैं।महाराज, यह महान यज्ञ सात दिनों तक चलेगा। कम से कम एक लाख स्वर्ण मुद्राएं तो खर्च हो ही जाएंगी। प्रतिदिन सवेरे सूर्योदय से पहले मैं नदी के ठंडे जल में खड़े होकर तपस्या करूंगा और देवी-देवताओं कोप्रसन्न करूंगा।और अगले ही दिन से यज्ञ शुरू हो गया। इस यज्ञ में दूर-दूर से हजारों लोग आते और ढेरों प्रसाद बंटता है।पुरोहितजी यज्ञ से पहले सुबह-सवेरे कड़कड़ाती ठंड में नदी के ठंडे जल में खड़े होकर तपस्या करते, देवी-देवताओं को प्रसन्न करते। लोग यह सब देखते और आश्चर्यचकित होते।

एक दिन राजा कृष्णदेव राय भी सुबह-सवेरे पुरोहितजी को तपस्या करते देखने के लिए गए। उनके साथ तेनालीराम भी था।
ठंड इतनी थी कि दांत किटकिटा रहे थे। ऐसे में पुरोहितजी को नदी के ठंडे पानी में खड़े होकर तपस्या करते देख राजा कृष्णदेव राय ने तेनालीराम से कहा, आश्चर्य! अदभुत करिश्मा है!कितनी कठिन तपस्या कर रहे हैं हमारे पुरोहितजी। राज्य की भलाई की उन्हें कितनी चिंता है!वह तो है ही। आइए महाराज जरा पास चलकर देखें पुरोहितजी की तपस्या को। तेनालीराम ने कहा।लेकिन पुरोहितजी ने तो यह कहा है कि तपस्या करते समय कोई पास न आए। इससे उनकी तपस्या में विघ्न पैदा होगा, राजा ने कहा।
तो महाराज, हम दोनों ही कुछ देर तक उनकी प्रतीक्षा कर लें। जब पुरोहितजी तपस्या समाप्त करके ठंडे पानी से बाहर आएं, तो फल-फूल देकर उनका सम्मान करें।राजा कृष्णदेव राय को तेनालीराम की यह बात जंच गई। वे एक ओर बैठकर पुरोहित को तपस्या करते देखते रहे।
काफी समय गुजर गया लेकिन पुरोहितजी ने ठंडे पानी से बाहर निकलने का नाम तक न लिया, तभी तेनालीराम बोल उठा- अब समझ में आया। लगता है ठंड की वजह से पुरोहितजी का शरीर अकड़ गया है इसीलिए शायद इन्हें पानी सेबाहर आने में कष्ट हो रहा है। मैं इनकी सहायता करता हूं।

तेनालीराम नदी की ओर गया और पुरोहितजी का हाथ पकड़कर उन्हें बाहर खींच लाया। पुरोहितजी के पानी से बाहर आते ही राजा हैरान रह गए। उनकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। वे बोले, अरे, पुरोहितजी की तपस्या काचमत्कार तो देखो! उसका आधा शरीर नीले रंग का हो गया है।तेनालीराम हंसकर बोला, यह कोई चमत्कार नहीं है, महाराज। यह देखिए सर्दी से बचाव के लिए पुरोहितजी ने धोती के नीचे नीले रंग का जलरोधक पाजामा पहन रखा है।
राजा कृष्णदेव राय हंस पड़े और तेनालीराम को साथ लेकर अपने महल की ओर चल दिए। पुरोहित दोनों को जाते हुए देखता रहा।
- बोध : हमेशा सत्य की ही जीत होती हैं।
27 : ईमानदार तेनालीराम – Tenali raman stories in hindi
तेनाली रामन अपने दिमाग के बल पर बार-बार अपने राज्य के लोगों की मदद करते थे। दरबार के ज्यादातर लोग तेनालीराम के शौहरत से जलते थे और हमेशा राजा को तेनाली के खिलाफ भड़काते रहते थे। वैसे तो राजा तेनाली पर पूरा विश्वास करते थे पर बहुत दिन तक बार-बार तेनाली के खिलाफ भड़काने के कारण राजा को भी कुछ शक सा हो गया।
अगले दिन जब सुबह दरबार का कार्य शुरू हुआ तो राजा ने तेनालीराम से कहा तेनालीराम मैं तुम्हरी बहुत शिकायत सुन रहा हूँ कि तुम राज्य के लोगों को ठग रहे हो और उनसे पैसे लूट रहे हो।

तेनालीराम ने राजा को उत्तरदेते हुए पुछा क्या आपको उनके इस बात पर विश्वास है। राजा ने उत्तर दिया हाँ, अगर तुम बेगुनाह हो तो साबित करो। तेनाली को यह दुःख भरे समाचार सुन कर अत्यंत दुख हुआ और वो कुछ बोले बिना ही वहां से निकल गया।
अगले दिन एक सैनिक राजा के लिए एक पत्र लेकर आया। वहपत्र तेनाली का था जिसमें लिखा हुआ था प्रणाम महाराज, मैंने कई वर्षों तक इमानदारी से आपके राज्य में काम किया है पर आज मुझ पर झूठा आरोप लगाया गया है और मेरी बेगुनाही साबित करने का एक ही रास्ता था मैं अपनी जान ले लूं।
राजा इस बात को लेकर बहुत परेशान हो गए और उची आवाज में वापस आ जाने का आदेश दिया , तेनाली यह साबित करने का सही तरिका नहीं है। तभी दरबार में बैठे एक के बाद एक मंत्री और लोग तेनाली की तारीफ करने लगे और उसके कार्यों का गुण गाने लगे। तेनाली वहीँ भेस बदलकर चुप कर सब कुछ देख रहा था। तभी तेनाली अपने असली भेस में आगे आये।
Tenali Raman stories in hindi
तेनाली को देख कर राजा खुश हुए। तब तेनाली ने राजा से कहा हे महाराज इस दरबार में बैठे सभी लोगों ने मेरे विषय में अच्छा ही कहा, क्या इससे कोई अच्छा रास्ता है यह बताने के लिए कि मैं इमानदार हूँ। राजा ने तेनाली से क्षमा माँगा और अपना गलती माना।
- बोध : अपने आप पर स्वाभिमान से अधिक गुमान न करना चाहिए।
28 : कुत्ते की दुम – Tenali raman stories in hindi
एक दिन राजा कृष्णदेव राय के दरबार में इस बात पर गरमा-गरम बहस हो रही थी कि मनुष्य का स्वभाव बदला जा सकता है या नहीं। कुछ का कहना था कि मनुष्य का स्वभाव बदला जा सकता है। कुछ का विचार था कि ऐसा नहीं होसकता, जैसे कुत्ते की दुम कभी सीधी नहीं हो सकती।
राजा को एक विनोद सूझा। उन्होंने कहा, बात यहां पहुंची कि अगर कुत्ते की दुम सीधी की जा सकती है, तो मनुष्य का स्वभाव भी बदला जा सकता है, नहीं तो नहीं बदला जा सकता। राजा ने फिर विनोद को आगे बढ़ाने कीसोची, बोले, ठीक है, आप लोग यह प्रयत्न करके देखिए।
राजा ने दस चुने हुए व्यक्तियों को कुत्ते का एक-एक पिल्ला दिलवाया और छह मास के लिए हर मास दस स्वर्ण मुद्राएं देना निश्चित किया। इन सभी लोगों को कुत्तों की दुम सीधी करने का प्रयत्न करना था। इन व्यक्तियों में एक तेनालीराम भी था। शेष नौ लोगों ने इन छह महीनों में पिल्लों की दुम सीधी करने की बड़ी कोशिशें कीं।

एक ने पिल्ले की पूंछ के छोर को भारी वजन से दबा दिया ताकि इससे दुम सीधी हो जाए। दूसरे ने पिल्ले की दुम को पीतल की एक सीधी नली में डाले रखा। तीसरे ने अपने पिल्ले की पूछ सीधी करने के लिए हर रोज पूंछ कीमालिश करवाई।
छठे सज्जन कहीं से किसी तांत्रिक को पकड़ लाए, जो कई तरह से उटपटांग वाक्य बोलकर और मंत्र पढ़कर इस काम को करने के प्रयत्न में जुटा रहा। सातवें सज्जन ने अपने पिल्ले की शल्य चिकित्सा यानी ऑपरेशन करवाया।आठवां व्यक्ति पिल्ले को सामने बिठाकर छह मास तक प्रतिदिन उसे भाषण देता रहा कि पूंछ सीधी रखो भाई, सीधी रखो।
नौवां व्यक्ति पिल्ले को मिठाइयां खिलाता रहा कि शायद इससे यह मान जाए और अपनी पूंछ सीधी कर ले। पर तेनालीराम पिल्ले को इतना ही खिलाता जितने से वह जीवित रहे। उसकी पूंछ भी बेजान-सी लटक गई, जो देखने मेंसीधी ही जान पड़ती थी।
कुछ महीने का समय बीता। राजा ने दसों पिल्लों को दरबार में हाज़िर करने को कहा। नौ व्यक्तियों ने हट्टे-कट्टे और स्वस्थ पिल्ले पेश किए। जब पहले पिल्ले की पूंछ से वजन हटाया गया तो वह एकदम टेढ़ी होकर ऊपर
उठ गई। दूसरी की दुम जब नली में से निकाली गई वह भी उसी समय टेढ़ी हो गई। शेष सातों पिल्लों की पूंछें भी टेढ़ी ही थीं।
तेनालीराम ने अपने अधमरा-सा पिल्ला राजा के सामने कर दिया। उसके सारे अंग ढलक रहे थे।
तेनालीराम बोला, महाराज, मैंने कुत्ते की दुम सीधी कर दी है।
दुष्ट कहीं के! राजा ने कहा, बेचारे निरीह पशु पर तुम्हें दया भी नहीं आई? तुमने तो इसे भूखा ही मार डाला। इसमें तो पूंछ हिलाने जितनी शक्तिभी नहीं है।
महाराज, अगर आपने कहा होता कि इसे अच्छी तरह खिलाया-पिलाया जाए तो मैं कोई कसर नहीं छोड़ता, पर आपका आदेश तो इसकी पूंछ को स्वभाव के विरुद्ध सीधा करने का था, जो इसे भूखा रखने से ही पूरा हो सकता था।
बिलकुल ऐसे ही मनुष्य का स्वभाव भी असल में बदलता नहीं है।
हां, आप उसे काल-कोठरी में बंद करके, उसे भूखा रखकर उसका स्वभाव मुर्दा बना सकते हैं।
- बोध : जानवरो का ख्याल रखना हमारी जवाबदारी हैं।
- नोंध : इस आर्टिकल में उपयोग की हुई सभी फोटोज “गूगल फोटोज” और pinterest से ली गई हैं।
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