तेनाली एक योद्धा – Tenali raman stories
तेनाली एक योद्धा – Tenali raman stories : बहुत समय पहले की बात हैं , एक सुप्रसिद्ध योद्धा उत्तर भारत से विजयनगर आया।वह योद्धा पराक्रमी था , उसने अपने बल और ताकत पर कई राजाओ को पराजित किया था और पुरस्कार भी जीत रखे थे। वह आज तक एक ही बार बार पराजित हुआ था। उसकी सारी जिंदगी में वो मल्ल युद्ध में कभी पराजित नहीं हुआ था। विजयनगर आया हुए योद्धा ने विजयनगर के योद्धाओ को लड़ने के लिए ललकारा। उसका शरीर कदावर , लम्बा चौडा एवं शक्तिशाली था।

इस योद्धा के मुकाबले विजयनगर का कोई भी योद्धा बराबरी न सका। अब बात बढ़ कर विजयनगर की इज़्ज़त और प्रतिष्ठा पर आ चुकी थी। यह बात को लेकर नगर के सभी लोग चिंतित थे। बाहर का आया हुआ वो एक अकेला योद्धा पूरे विजयनगर को चुनौती दे रहा था और विजयनगर की प्रजा कुछ भी नहीं कर पा रही थी। आखिर में विजयनगर की प्रजा अपनी समस्या लेकर तेनालीराम के पास गए। सभी बात संपूर्ण धैर्य से सुनने के बाद तेनालीरामा ने कहा – ‘सचमुच, एक गंभीर समस्या है, मुख्य बात यह है की उस अनजान योद्धा को तो कोई हमारा योद्धा हरा सकता। मैं एक विदूषक हूं कोई योद्धा नहीं । इस मामले में करू तो क्या करू? ‘तेनालीराम की यह निराशा भरी बात से सभी विजयनगर की प्रजा मायूस हो गइ , क्योंकि सब की एकमात्र आशा तेनालीराम ही था। सभी प्रजाजन बड़ी निराशा के साथ वापिस लौट रहे थे तभी तेनालीराम ने रोका और कहा – ‘मैं उस शक्तिसाली योद्धा से लडूंगा और उसे हराऊंगा भी , परंतु आप सभी प्रजाजन को मुझे एक वचन देना कि ,सभी मेरी आज्ञा का पालन करेंगे ।
‘नगरवासीओ ने उसी वक्त वचन दे दिया ।वचन मिलते ही तेनालीराम बोला- ‘युद्ध के दिन आप सब लोग पदक पहना देना और उस बलवान योद्धा से मेरा परिचय अपने एक गुरु के रूप में करवाना साथ ही मुझे अपने कंधे पर बैठाकर ले जाना। विजयनगर की प्रजा ने तेनालीराम को पूरी तरह से समर्थन दिया। निश्चित किये गए युद्ध के दिन तेनालीराम ने योद्धाओं को एक नारा भी याद करने को कहा, “जो कि इस प्रकार था, ‘ममूक महाराज की जय’, ‘मीस ममूक महाराज की जय”।

‘तेनालीराम ने अपनी बात बताते हुए कहा – ‘मेरे दिए गए नारे को युद्धभूमि में ले जाते समय मुझे कंधों पर बैठाकर बोलना हैं , सभीको इस नारा जोर-जोर से बोलना है ।’ युद्ध के दिन युद्धभूमि में जोर-जोर से नारा लगाते हुए तेनालीराम को लाया गया , योद्धाओं की इतनी ऊंची आवाज सुनकर उस योद्धा को लगा की यकींनन कोई बड़ा योद्धा मुझसे युद्ध करने आ रहा हैं। नारा के शब्द एक साधारण कविता थी जो कन्नड़ भाषा में था। जिसमें ‘ममूक’ अथार्त – ‘धूल चटाना’ और ‘मीस’ शब्द का अर्थ भी एक जैसा ही था।
मुख्य बात ये हैं की वह योद्धा कन्नड़ भाषा को नहीं समझ पा रहा था। अतः मन-ही मन सोच लिया की बड़ा योद्धा आ रहा हैं। तेनालीराम उस योद्धा के करीब आया और बोला- ‘इससे पहले कि मैं तुम्हारे साथ युद्ध करूं ; तुम्हें मुझे एक प्रश्न का उत्तर देना होगा , तुम्हे मुझे हाव-भावों का अर्थ बताना होगा। वास्तव में सभी बड़े एवं महान योद्धा को इन हाव-भावों का अर्थ ज्ञात होता ही हैं। अगर तुम मेरे प्रश्न “हाव-भावों” का उत्तर देने में कामियाब होंगे तभी मैं तुम्हारे साथ युद्ध करने की चेष्ठा करूंगा। यदि तुम उत्तर देने में असफल रहे तो तुम्हें अपनी पराजय स्वीकार करनी पडेगी।’ विजयनगर के इतने महान योद्धाओं को देख, जो कि तेनालीराम को कंधों पर उठाकर लाए थे और उसे अपना गुरु बता रहे थे साथ ही जोर-जोर से नारा भी लगा रहे थे, उत्तर भारत का यह योद्धा ने सोचा कि अवश्य ही तेनालीराम कोई बहुत ही महान योद्धा है। आखिर में उस योद्धा ने तेनालीराम की बात को समर्थन दिया।
समर्थन के बाद तेनालीराम ने पहले अपना दायां पैर आगे करके उस बलसाली योद्धा की छाती को अपने हाथ से छुआ। फिर तेनालीराम ने अपने दूसरे हाथ से स्वयं को छुआ, बाद मे उसने अपने हाथ को बाएं हाथ पर रखकर बड़े ही जोर से दबा दिया। इसके बाद उसने दक्षिण दिशा की ओर नगरवासी को संकेत किया। फिर उसने अपने दोनों हाथों की तर्जनी उंगलियों से एक गांठ बनाई, तत्पश्चात थोड़ी धूल उठाकर अपने ही मुंह में डालने का नाटक किया। तेनालीराम की यह हरकत उस योद्धा को पहचानने के लिए कहा, परंतु उत्तर भारत का वह योद्धा मात्र शरीर से बलवान था , वो कुछ समजा नहीं।

इसलिए उसने अपनी हार मान ली। योद्धा पराजित हो कर विजयनगर से चला तो गया परन्तु जाते-जाते अपने सारे पुरस्कार तेनालीराम को भेट कर दिए। विजयनगर के राजा व प्रजाजन यह परिस्थिति के देखकर आश्चर्य हो गए। सभी के मन में प्रशन्नता निखर कर जलक रही थी। राजा कृष्णदेवराय ने तेनालीराम को अपने पास बुलाकर पूछा- ‘तेनाली, उन हाव-भावों से ऐसा तुमने क्या जादू किया? ‘तेनालीराम सहज भाव से बोला- ‘महाराज, इसमें कोई जादू एवं चमत्कार नहीं था। यह हमारी उस योद्धा को मूर्ख बनाने की रची हुई योजना थी।
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मेरी सोच के अनुसन्धान पर वह शक्तिसाली योद्धा उसी प्रकार शक्तिशाली था , जैसे कोई व्यक्ति का दायां हाथ शक्तिशाली होता है और मैं उस योद्धा के सामने बाएं हाथ की तरह बिलकुल निर्बल था। यदि दाएं हाथ से जो योद्धा शक्तिशाली है वह योद्धा बाएं हाथ के समकक्ष निर्बल योद्धा को युद्ध के लिए ललकारेगा तो निर्बल योद्धा तो आराम से चकनाचूर हो जाएगा, यदि हम युद्ध में पराजित होते तो मेरी पत्नी को पराजित होने का अपमान सहना पडता ; जो की दक्षिण दिशा में बैठी थी । मेरे चहेरे की हर लकीर का यह अर्थ था परंतु वह योद्धा समज नहीं पाया। ‘तेनाली की हास्यस्पद और चतुराई भरी बात सुनकर राजा और प्रजा दोनों ही दंग रह गए। एक बार फिर तेनालीराम ने अपनी सूजबुज से आपने विजयनगर की प्रतिष्ठा को कायम रखा।
मेरा नाम निश्चय है। में इसी तरह की हिंदी कहानिया , हिंदी चुटकुले और सोशल मीडिया से संबंधित आर्टिकल लिखता हु। यह आर्टिकल ‘तेनाली एक योद्धा – tenali raman stories” अगर आपको पसंद आया हो तो अपने दोस्तों के साथ शेयर करे और हमे फेसबुक आदि में फॉलो करे।
Hey Nischay,
You know you are great story writer and all your story like horror stories or tenali raman stories all are the best.
I think you should publish your own book. You stories really amazing to read. I read daily it’s give me positive konwledge.